आत्मनिवेदन यानि नरमेध यज्ञ .......
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योगियों के अनुसार कुण्डलिनी जागरण ................ गोमेध यज्ञ है,
मणिपुर चक्र का भेदन ...................................... अश्वमेध यज्ञ है,
अनाहत चक्र का भेदन ...................................... वाजपेय यज्ञ है,
आज्ञा चक्र का भेदन .......................................... सोम यज्ञ है,
और अपने आप को हवि रूप में
परमात्मा रुपी अग्नि में पूर्ण समर्पण ........................ नरमेध यज्ञ है|
यह आत्मनिवेदनात्मक भक्ति रुपी यज्ञ है|
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कोई भी प्राणी पवित्रता और शुद्ध भाव से अपने आपको शाकल्य मानकर और भगवान को अग्नि समझकर उन प्रभु को अपने आप को निरंतर समर्पित करता है, तो यह नरमेध यज्ञ उसे भगवान् की प्राप्ति करा देता है|
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योगियों के अनुसार कुण्डलिनी जागरण ................ गोमेध यज्ञ है,
मणिपुर चक्र का भेदन ...................................... अश्वमेध यज्ञ है,
अनाहत चक्र का भेदन ...................................... वाजपेय यज्ञ है,
आज्ञा चक्र का भेदन .......................................... सोम यज्ञ है,
और अपने आप को हवि रूप में
परमात्मा रुपी अग्नि में पूर्ण समर्पण ........................ नरमेध यज्ञ है|
यह आत्मनिवेदनात्मक भक्ति रुपी यज्ञ है|
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कोई भी प्राणी पवित्रता और शुद्ध भाव से अपने आपको शाकल्य मानकर और भगवान को अग्नि समझकर उन प्रभु को अपने आप को निरंतर समर्पित करता है, तो यह नरमेध यज्ञ उसे भगवान् की प्राप्ति करा देता है|
हवि डालते समय ओम् या किसी भगवन्नाम या मन्त्र का उच्चारण हम कर सकते हैं|
यह सामग्रीनिरपेक्ष सात्विक यज्ञ है जिसे शरणागति या आत्मनिवेदन भक्ति भी
कह सकते हैं| इस परम सात्विक नरमेध यज्ञ यानि आत्मनिवेदन रूपी भक्ति यज्ञ
का आश्रय हम सब ले सकते हैं|
ॐ आत्मतत्वं समर्पयामी नम: स्वाहा । इदम् नरमेध यज्ञे आत्म कल्याणार्थाय इदम् न मम ।।
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२७ मई २०१५
ॐ आत्मतत्वं समर्पयामी नम: स्वाहा । इदम् नरमेध यज्ञे आत्म कल्याणार्थाय इदम् न मम ।।
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२७ मई २०१५
सेवानिवृति के पश्चात् मेरे बहुत सारे मित्र ऊपर अज्ञात में चले गए| कुछ ने तो अपने को बेकार पाया, कुछ अपनों की उपेक्षा से व्यथित हो कर चले गए| बचे हैं तो मेरे जैसे सिर्फ वे ही लोग जिन्होनें अपना जीवन राम जी को सौंप दिया और इस सत्य को स्वीकार कर लिया है कि ..... "जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिये"|
ReplyDeleteउन बचे हुओं का भी कुछ पता नहीं है कि वे कहाँ कहाँ हैं|
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राम नाम अंतिम सत्य है जिसे सब को स्वीकार करना ही होगा, चाहे रो कर करो चाहे हँसकर| अपेक्षाएँ कभी किसी की पूरी नहीं होती| अपेक्षाएँ ही सब दुःखों का मूल है| जीवन में अंततः मैंने उन्हीं को सुखी पाया जिन्होंने आध्यात्म की शरण ले ली| अतः जब तक हाथ पैर चलते हैं, दिमाग काम करता है, मनुष्य को सम्भल जाना चाहिये| जय श्रीराम !
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||