नाद और बिंदु से संसार की उत्पत्ति ......
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जब ब्रह्मांड नहीं था, सिर्फ अंधकार था, तब अचानक ही एक बिंदु की उत्पत्ति हुई, और वह बिंदु मचलने लगा| तब उसके अंदर भयानक परिवर्तन और विस्फोट होने लगे| शिव पुराण के अनुसार नाद और बिंदु के संयोग से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई है| नाद अर्थात ध्वनि और बिंदु अर्थात प्रकाश| इसे ही अनाहत नाद या अनहद की ध्वनि कहते हैं जो शाश्वत और सनातन है| इसी ध्वनि को हिंदुओं ने "ॐ" के रूप में व्यक्त किया है और यह ॐ ही परम ब्रह्म है जो स्वयं प्रकाशित है| ध्यान में सुनने और दिखाई देने वाली इसी ज्योतिर्मय अक्षर परम ब्रह्म की सतत् चेतना को योगी लोग कूटस्थ चैतन्य कहते हैं|
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ब्रह्म शब्द ब्रह् धातु से बना है, जिसका अर्थ है .... निरंतर 'बढ़ना' या 'फूट पड़ना'| ब्रह्म वह है, जिसमें से सम्पूर्ण सृष्टि और आत्माओं की उत्पत्ति हुई है, या जिसमें से ये फूट पड़े हैं| विश्व की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश का कारण ब्रह्म ही है| जिस तरह मकड़ी स्वयं, स्वयं में से जाले को बुनती है, उसी प्रकार ब्रह्म भी स्वयं में से स्वयं ही विश्व का निर्माण करता है, उसको स्थित भी रखता है, और बापस अपने में समेट भी लेता है| नृत्यकार और नृत्य में कोई अंतर नहीं है| जब तक नृत्यकार का नृत्य चलेगा, तभी तक नृत्य का अस्तित्व है| यह सृष्टि भी परमात्मा यानि परम ब्रह्म की ही अभिव्यक्ति है|
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ॐ तत्सत् |ॐ ॐ ॐ ||
२६ मई २०१३
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जब ब्रह्मांड नहीं था, सिर्फ अंधकार था, तब अचानक ही एक बिंदु की उत्पत्ति हुई, और वह बिंदु मचलने लगा| तब उसके अंदर भयानक परिवर्तन और विस्फोट होने लगे| शिव पुराण के अनुसार नाद और बिंदु के संयोग से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई है| नाद अर्थात ध्वनि और बिंदु अर्थात प्रकाश| इसे ही अनाहत नाद या अनहद की ध्वनि कहते हैं जो शाश्वत और सनातन है| इसी ध्वनि को हिंदुओं ने "ॐ" के रूप में व्यक्त किया है और यह ॐ ही परम ब्रह्म है जो स्वयं प्रकाशित है| ध्यान में सुनने और दिखाई देने वाली इसी ज्योतिर्मय अक्षर परम ब्रह्म की सतत् चेतना को योगी लोग कूटस्थ चैतन्य कहते हैं|
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ब्रह्म शब्द ब्रह् धातु से बना है, जिसका अर्थ है .... निरंतर 'बढ़ना' या 'फूट पड़ना'| ब्रह्म वह है, जिसमें से सम्पूर्ण सृष्टि और आत्माओं की उत्पत्ति हुई है, या जिसमें से ये फूट पड़े हैं| विश्व की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश का कारण ब्रह्म ही है| जिस तरह मकड़ी स्वयं, स्वयं में से जाले को बुनती है, उसी प्रकार ब्रह्म भी स्वयं में से स्वयं ही विश्व का निर्माण करता है, उसको स्थित भी रखता है, और बापस अपने में समेट भी लेता है| नृत्यकार और नृत्य में कोई अंतर नहीं है| जब तक नृत्यकार का नृत्य चलेगा, तभी तक नृत्य का अस्तित्व है| यह सृष्टि भी परमात्मा यानि परम ब्रह्म की ही अभिव्यक्ति है|
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ॐ तत्सत् |ॐ ॐ ॐ ||
२६ मई २०१३
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