Sunday, 28 May 2017

हम जिस आनंद को खोज रहे हैं, वह आनंद हम स्वयं ही हैं .....

हम जिस आनंद को खोज रहे हैं, वह आनंद  हम स्वयं ही हैं .....
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हम इस संसार में जिस खजाने को ढूँढ रहे हैं, वह खज़ाना तो हम स्वयं ही हैं|
हम जिस आनंद को खोज रहे हैं, वह आनंद भी हम स्वयं ही हैं|

हमारे धर्म-ग्रन्थ कहते हैं .....
त्वं हि ब्रह्मैव साक्षात् परमुरुमहिमन्नक्षराणामकार-
स्तारो मन्त्रेषु राज्ञां मनुरसि मुनिषु त्वं भृगुर्नारदोऽपि ।
प्रह्लादो दानवानां पशुषु च सुरभि: पक्षिणां वैनतेयो
नागानामस्यनन्तस्सुरसरिदपि च स्रोतसां विश्वमूर्ते ॥

हे महान महिमाशाली! निस्सन्देह आप ही साक्षात परम ब्रह्म हैं। अक्षरों में आप ही 'अ' कार हैं, मन्त्रों में 'ऊं' कार, राजाओं में मनु, ब्रह्मर्षियों में भृगु और देवर्षियों में नारद हैं। हे विश्वमूर्ते! असुरों में आप ही प्रह्लाद हैं, पशुओं में सुरभि गाय, पक्षियों में गरुड, नागों में अनन्त, और नदियों में गङ्गा हैं।
अब इसके बाद कुछ भी कहने की क्या आवश्यकता है ? ॐ ॐ ॐ ||
May 26, 2015 at 11:40am ·

1 comment:

  1. इस भौतिक जीवन में चारों ओर नकारात्मकता ही नकारात्मकता अधिक प्रतीत होती है| यह भगवान की माया ही है जो आवरण और विक्षेप के रूप में व्यक्त हो रही है| इस विक्षेप और आवरण से परे जाना ही होगा|

    एकमात्र सत्य परमात्मा है जिसके साथ एकाकार होना ही हमारे जीवन का लक्ष्य है| एकमात्र अस्तित्व भी परमात्मा का ही है, बाकी सब भ्रम है|

    ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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