Sunday, 28 May 2017

भगवान शिव के माथे पर सदा गंगाजी क्यों विराजमान हैं ----------

भगवान शिव के माथे पर सदा गंगाजी क्यों विराजमान हैं .......
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गंगा का अर्थ है .....ज्ञान | हमारे पंचकोषात्मक (अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनन्दमय) देह के मस्तिष्क में ज्ञान गंगा नित्य विराजमान है| भगवान शिव तो परम चैतन्य के प्रतीक ही नहीं स्वयं परम चैतन्य हैं| समस्त सृष्टि के सर्जन-विसर्जन की क्रिया उनका नृत्य है| परमात्मा की ऊँची से ऊँची विराट से विराट परिकल्पना जो मनुष्य का मस्तिष्क परमात्मा की कृपा से ही कर सकता है वह भगवान शिव का स्वरुप है| उनके माथे पर चन्द्रमा कूटस्थ चैतन्य, गले में सर्प कुण्डलिनी महाशक्ति, उनकी दिगंबरता सर्वव्यापकता, और देह पर भभूत वैराग्य के प्रतीक हैं| ऐसे ही उनके माथे पर गंगा जी समस्त ज्ञान का प्रतीक है जो निरंतर प्रवाहित हो रही है| जिस तरह मनुष्य के मस्तिष्क में ज्ञान और बुद्धिमता का भंडार भरा पड़ा है वैसे ही सर्व व्यापक भगवान शिव के माथे पर सम्यक चैतन्य की आधार माँ गंगाजी नित्य विराजमान हैं|
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भगवान शिव का स्वरुप पूर्णता का प्रतीक है| स्वर्णिम लहराती जटा उनकी व्यापकता की सूचक है जिसमें उन्होंने सारे संसार का भार उठा रखा है| गले में लिपटा सर्प काल स्वरुप है जिस पर वश करने के कारण ही वे मृत्युंजय हैं| यदि वे विष को अपने कंठ में धारण नहीं करते, तो देवताओं को अमृत कभी नहीं मिल पाता| वही अमृत हमें कुम्भ के मेलों में मिल रहा है| सारी सृष्टि के हलाहल का उन्होंने पान कर लिया, पर स्वयं अमृतमय होने के कारण वह हलाहल नीचे नहीं उतर रहा है अतः वे नीलकंठ हैं| त्रिशुल त्रिगुणात्मक शक्तियों और तीन प्रकार के कष्टों के विनाश का सूचक है| व्याघ्र चर्म मन की चंचलता के दमन का सूचक है| नन्दी रुपी धर्म पर भस्म लपेटे हुये पूर्ण निर्लिप्तता के साथ वे सारी सृष्टि में विचरण करते हैं| माँ भगवती पार्वती, गणेश और कार्तिकेय ..... सब की पृथक पृथक उपासना भी महा फलदायी है, पर एक शिव की उपासना में ही सभी का फल मिल जाता है| उनकी महिमा अनंत है|
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ॐ नमः शिवाय ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ मई २०१३

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