Monday 11 March 2019

आध्यात्मिक साधना में मार्गदर्शन की आवश्यकता .....

आध्यात्मिक साधना में सफलता के लिए किन्हीं सिद्ध ब्रह्मनिष्ठ श्रौत्रीय आचार्य से मार्गदर्शन बड़ा आवश्यक है, हर किसी से नहीं| मन्त्र साधना में तो यह अनिवार्य है, अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि भी हो सकती है| मन्त्रयोग संहिता में आठ प्रमुख बीज मन्त्रों का उल्लेख है जो शब्दब्रह्म ओंकार की ही अभिव्यक्तियाँ हैं| लिंग पुराण के अनुसार ओंकार का प्लुत रूप नाद है| मन्त्र में पूर्णता "ह्रस्व", "दीर्घ" और "प्लुत" स्वरों के ज्ञान से आती है जिसके साथ पूरक मन्त्र की सहायता से विभिन्न सुप्त शक्तियों का जागरण होता है|
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वर्णात्मक और ध्वन्यात्मक नाद, बिंदु, बीजमंत्र, अजपा-जप, षटचक्र साधना, योनी मुद्रा में ज्योति दर्शन, खेचरी मुद्रा, महामुद्रा, नाद व ज्योति तन्मयता और साधन क्रम आदि का ज्ञान गुरु की कृपा से ही हो सकता है| साधना में सफलता भी गुरु कृपा से ही होती है और ईश्वर लाभ भी गुरु कृपा से होता है|
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किसी भी साधना का लाभ उसका अभ्यास करने से है, उसके बारे में जानने मात्र से या उसकी विवेचना करने से कोई लाभ नहीं है| हमारे सामने मिठाई पडी है तो उसका आनंद उस को चखने और खाने में है, न कि उसकी विवेचना से| भगवान का लाभ उनकी भक्ति यानि उनसे प्रेम करने से है न कि उनके बारे में की गयी बौद्धिक चर्चा से| प्रभु के प्रति प्रेम हो, समर्पण का भाव हो और हमारे भावों में शुद्धता हो तो कोई हानि होने कि सम्भावना नहीं है| जब पात्रता हो जाती है तब गुरु का पदार्पण भी जीवन में हो जाता है|
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मेरी तो मान्यता है कि नाद से बड़ा कोई मन्त्र नहीं है, आत्मानुसंधान से बड़ा कोई तंत्र नहीं है, अनंताकाश के सूर्यमंडल में व्याप्त निज आत्मा से बड़ा कोई देव नहीं है, स्थिर तन्मयता से नादानुसंधान ही परा पूजा है| उस से प्राप्त तृप्ति और आनंद ही परम सुख है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ऐं गुरवे नमः ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ मार्च २०१९

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