Monday, 11 March 2019

विद्वान कौन है ? ....

विद्वान कौन है ?
प्राणो ह्येष यः सर्वभूतैर्विभाति विजानन्विद्वान्भवते नातिवादी |
आत्मक्रीड आत्मरतिः क्रियावानेष ब्रह्मविदां वरिष्ठः ||मुण्डकोपनिषद, ३.१.४ ||
..... प्राण तत्व, जो सब भूतों/प्राणियों में प्रकाशित है, को जानने वाला ही विद्वान् है, न कि बहुत अधिक बात करने वाला| वह आत्मक्रीड़ारत और आत्मरति यानि आत्मा में ही रमण करने वाला क्रियावान ब्र्ह्मविदों में वरिष्ठ यानि श्रेष्ठ है|
(भक्तिसुत्रों में आत्मा में रमण करने वाले को आत्माराम कहा गया है ... "यज्ज्ञात्वा मत्तो-भवति, स्तब्धो भवति, आत्मारामो भवति")
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श्वेतकेतु की कथा महाभारत के आदिपर्व में भी आती है| ये अपने समय के सबसे बड़े समाज सुधारक थे जिन्होनें कई नई व्यवस्थाएं दीं जो आज भी हिन्दू समाज में प्रचलित हैं| छान्दोग्य उपनिषद्‍ (अध्याय ६, खंड १३) में परमात्मा या परब्रह्म की व्यापकता को लेकर ऋषि उद्दालक (अरुणपुत्र आरुणि) एवं उनके पुत्र श्वेतकेतु के बीच एक संवाद का उल्लेख मिलता है|
छान्दोग्योपनिषद् की एक कथा है ..... धोम्य ऋषि के शिष्य आरुणी उद्दालक का पुत्र श्वेतकेतु गुरुकुल से शिक्षा प्राप्त करके अपने घर आया| उसमें गुरुकुल में सीखी हुई विद्याओं का अहंकार था, उसके पिता उसके अहंकार को देखकर समझ गए उसने वेदों के मर्म को नहीं समझा है, केवल शाब्दिक शिक्षाओं का बोझा ढोकर ही आया है|
पूरी कथा बहुत लम्बी है अतः संक्षेप में ही समापन कर रहा हूँ| उन्होंने उसे तत त्वं असि = तत्वमसि ब्रह्मज्ञान का उपदेश देकर समझाया कि शब्दों के ज्ञान से कोई विद्वान नहीं बनता| उसके लिए आत्म-तत्व को जानना बड़ा आवश्यक है|
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इस की विधि उपनिषदों में और गीता में भी दी हुई है| पर किसी श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ सिद्ध आचार्य का मार्गदर्शन आवश्यक है जो परमात्मा की परम कृपा से ही प्राप्त होता है| गीता के अनुसार समत्व में स्थिति ही ज्ञान है, और ज्ञानी भी वही है जिसने समत्व को प्राप्त कर लिया है| बहुत सारी डिग्रियों को प्राप्त कर के कोई ज्ञानी नहीं हो सकता| उपनिषदों के अनुसार विद्वान् भी वही है जो आत्म-तत्व में रमण करता है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ श्रीगुरवे नमः ! ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२३ फरवरी २०१९

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