Monday 11 March 2019

मुक्ति की सोचें, बंधनों की नहीं .....

मुक्ति की सोचें, बंधनों की नहीं .....
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सनातन धर्म हमें सिखाता है कि हम अपने अंतःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, और अहंकार) पर नियंत्रण करें और हर तरह की कामनाओं व वासनाओं से मुक्त हों| हर कामना व वासना एक बंधन है| स्वर्ग की कामना भी एक अधोगामी बंधन है| दूसरों को दुःख देना एक महापाप है| यदि हम स्वयं के सुख के लिए दूसरों को दुखी या पीड़ित करते हैं हैं तो निश्चित रूप से नर्कगामी पथ पर चल रहे हैं|
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हमने कभी पूर्ण हृदय से भगवान को चाहा ही नहीं| यदि पूर्ण हृदय से चाहते तो भगवान अब तक अवश्य मिल जाते| भगवान ने गीता में स्पष्ट कहा है कि कौन किस विधि से उन्हें प्रात कर सकता है| वह विधि है ..... अनन्य योग और अव्यभिचारिणी भक्ति| काश ! उसकी पात्रता हमारे में भी होती|
"मयि चानन्ययोगेन भक्ितरव्यभिचारिणी | विविक्तदेशसेवित्वमरतिर्जनसंसदि||१३:११||"
"इति क्षेत्रं तथा ज्ञानं ज्ञेयं चोक्तं समासतः| मद्भक्त एतद्विज्ञाय मद्भावायोपपद्यते||१३:१९||"


ॐ तत्सत् !
२२ फरवरी २०१९

1 comment:

  1. मन्त्र और तंत्र क्या हैं ? .....
    (१) मन्त्र :-- जो अशांत मन की चेतना से हमारी रक्षा करे, वह मन्त्र है|
    (२) तंत्र :-- जो इस तन यानी देह की चेतना से हमें मुक्त करे वह तंत्र है|

    प्रणव से बड़ा कोई मन्त्र नहीं है, और आत्मानुसंधान से बड़ा कोई तंत्र नहीं है|

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