जिन्हें भगवान से प्रेम है और जो उपासना करना चाहते हैं, पर कर नहीं पा रहे
हैं, उनके लिए भगवान ने अभ्यासयोग बताया है| कम से कम उनको थोड़ा-बहुत
अभ्यास तो करते ही रहना चाहिए| भगवान कहते हैं....
"अथ चित्तं समाधातुं न शक्नोषि मयि स्थिरम् | अभ्यासयोगेन ततो मामिच्छाप्तुं धनञ्जय ||१२:९||"
अर्थात् यदि जैसे मैंने बतलाया है उस प्रकार तूँ मुझ में चित्त को अचल स्थापित नहीं कर सकता तो फिर हे धनंजय तूँ अभ्यासयोग के द्वारा चित्त को सब ओर से खींच कर बारंबार एक ही अवलम्बन में लगा कर उससे युक्त जो समाधान रूप योग है, ऐसे अभ्यास योग के द्वारा मुझ विश्वरूप परमेश्वरको प्राप्त करने की इच्छा कर|
.
और कुछ नहीं कर सकें तो ऐसी इच्छा तो रखें| हर इच्छा पूरी होती है| इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में भगवान उचित वातावरण और परिस्थितियाँ प्रदान अवश्य करेंगे|
ॐ तत्सत्
५ मार्च २०१९
"अथ चित्तं समाधातुं न शक्नोषि मयि स्थिरम् | अभ्यासयोगेन ततो मामिच्छाप्तुं धनञ्जय ||१२:९||"
अर्थात् यदि जैसे मैंने बतलाया है उस प्रकार तूँ मुझ में चित्त को अचल स्थापित नहीं कर सकता तो फिर हे धनंजय तूँ अभ्यासयोग के द्वारा चित्त को सब ओर से खींच कर बारंबार एक ही अवलम्बन में लगा कर उससे युक्त जो समाधान रूप योग है, ऐसे अभ्यास योग के द्वारा मुझ विश्वरूप परमेश्वरको प्राप्त करने की इच्छा कर|
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और कुछ नहीं कर सकें तो ऐसी इच्छा तो रखें| हर इच्छा पूरी होती है| इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में भगवान उचित वातावरण और परिस्थितियाँ प्रदान अवश्य करेंगे|
ॐ तत्सत्
५ मार्च २०१९
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