Monday 11 March 2019

"निष्काम साधना" और "सेवा" ये ही हमारे साधन हैं .....

"निष्काम साधना" और "सेवा" ये ही हमारे साधन हैं .....
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जैसे जैसे परिपक्वता बढ़ती है वैसे वैसे ही हमारी सोच और हमारे विचार भी बदलते रहते हैं| कोई आवश्यक नहीं है कि सभी के विचार मिलें, पर समान विचारों के लोगों का साथ जीवन को आसान बना देता है| "साधना" और "सेवा" इन दोनों की अवधारणा भी अपनी अपनी सोच के अनुसार अलग अलग ही होती है| मैं अपने विचार किसी पर नहीं थोपता और न ही किसी को उसके विचार मुझ पर थोपने देता हूँ| जिन लोगों से मेरा स्वभाव और मेरे विचार मिलते हैं, सहज रूप से उनके साथ आत्मीयता हो ही जाती है| वैसे मेरी सद्भावना सभी के प्रति है क्योंकि एक स्तर पर मेरे सिवाय कोई अन्य है ही नहीं| सामाजिकता के नाते भी कई लोगों से मेरा मिलना होता रहता है जिसे मैं टाल नहीं सकता| पर मेरा लक्ष्य भी आध्यात्मिक है और सेवा की अवधारणा भी आध्यात्मिक है| जीवन से मैं पूरी तरह संतुष्ट हूँ| किसी से कोई शिकायत नहीं है| धर्म और राष्ट्र के प्रति भी मेरी अवधारणा स्पष्ट है| किसी भी तरह का कोई संशय नहीं है|
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सभी को मेरी शुभ कामनाएँ और नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ फरवरी २०१९

1 comment:

  1. किसी को भी मैं जो कुछ भी कहता हूँ तब लगता है कि मैं स्वयं को ही कह रहा हूँ| ऐसे ही जो कुछ भी लिखता हूँ तो लगता है स्वयं के लिए ही लिख रहा हूँ| मैं स्वयं ही अपने वाक्यों का श्रोता हूँ, और स्वयं ही अपने लेखन का पाठक हूँ| मेरे सिवाय अन्य कोई भी श्रोता या पाठक नहीं है| अतः आजकल कुछ भी लिखना बड़ा कठिन हो रहा है|

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