Monday, 11 March 2019

हम सच्चिदानन्द की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति हैं .....

हम सच्चिदानन्द की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति हैं .....
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हम सच्चिदानंद की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति और उन्हीं के साथ एक हैं| कहीं कोई भेद नहीं है| वे ही हमारे शाश्वत साथी हैं, जन्म से पूर्व भी वे ही हमारे साथ थे और मृत्यु के पश्चात भी वे ही हमारे साथ रहेंगे| कोई माने या न माने इससे कोई फर्क नहीं पड़ता,पर इस परम सत्य को कोई झुठला नहीं सकता कि भगवान ही हमारे प्रथम, अंतिम और एकमात्र सम्बन्धी हैं| वे ही परम शिव हैं, वे ही विष्णु हैं और वे ही सर्वस्व हैं| उनकी अनुभूति में बने रहना ही परम तीर्थ है| उनके प्रति आकर्षण और उनमें तन्मय हो जाना ही सच्चा प्रकाश है| इस देह को धारण भी उन्होंने ही कर रखा है| उनकी चेतना में बने रहना और पूर्ण रूपेण समर्पित होकर उनके साथ एकाकार होना ही जीवन का लक्ष्य है| यही साधना है और यही जीवन की सार्थकता है|
वे कहते हैं .....
"बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते | वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः ||७:१९||"
अर्थात् बहुत जन्मों के अन्त में (किसी एक जन्म विशेष में) ज्ञान को प्राप्त होकर कि यह सब वासुदेव है ज्ञानी भक्त मुझे प्राप्त होता है ऐसा महात्मा अति दुर्लभ है।।
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जब अग्नि के समक्ष होते हैं तब तपन की अनुभूति अवश्य होती है| ऐसे ही जब भगवान के सम्मुख होते हैं तब अनायास ही उनके अनुग्रह की अनुभूति होती है| इस लिए हमें निरंतर उनके स्मरण व उनकी चेतना के प्रकाश में रहना चाहिए|
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ श्रीगुरवे नमः ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२४ फरवरी २०१९

1 comment:

  1. आज प्रातःकाल उठते ही प्रेरणा मिली कि मैं आज प्राण-तत्व, आकाश-तत्व और परमशिव के बारे में कुछ लिखूं| पर ज्यों ही लिखने को उद्यत हुआ तब सूक्ष्म जगत में भटक रही एक-दो नरपिशाच रही आसुरी प्रेतात्माओं की स्मृति आ गयी जिन्होनें तुरंत आकर मेरे दिमाग में एक ऐसा विक्षेप डाल दिया कि मैं विषय से भटक गया और उपरोक्त विषयों पर कुछ भी लिखना असंभव हो गया| साधना के मार्ग पर देवता भी मिलते हैं और असुर भी जिनसे रक्षा गुरु महाराज के रूप में जगन्माता ही करती हैं|

    मेरा सौभाग्य देखिये कि यहाँ से सैंकड़ों मील दूर वर्तमान में नर्मदा तट के पास प्रवास कर रहे एक सिद्ध सन्यासी महात्मा जी का अपने आप ही एक घंटे पूर्व एक विडिओ कॉल आया जिसमें उन्होंने मुझे प्रत्यक्ष लगभग एक घंटे तक उपदेश और सत्संग लाभ देकर मेरे उद्वेलित मन को तो शांत किया ही, मानस में छिपे हुए सारे अव्यक्त प्रश्नों का उत्तर भी दे दिया| अब कोई जिज्ञासा या ऐसी बात नहीं रही है जो कोई रहस्य हो|

    अभी तो परमात्मा का ध्यान करने की प्रेरणा मिल रही है| फिर कभी सार की बात लिखूंगा|

    ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! श्रीगुरवे नमः !
    कृपा शंकर
    २५ फरवरी २०१९

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