शरणागति ही एकमात्र मार्ग बचा है, अन्य कोई मार्ग अब नहीं है .....
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यह एक आध्यात्मिक रहस्य है कि परमात्मा की प्राप्ति के लिए हम जो भी साधना करते हैं, उसका सिर्फ एक चौथाई भाग यानि २५% ही हमें करना पड़ता है, एक चौथाई भाग यानि २५% हमारे गुरु महाराज स्वयं हमारे साथ साथ करते हैं, और बाकी का ५०% स्वयं परमात्मा करते हैं| पर हमारा जो २५% भाग है उसका शत-प्रतिशत तो हमें करना ही पड़ता है| उसमें कोई माफी नहीं है| इतनी बड़ी छूट गुरु महाराज की कृपा से भगवान ने करुणावश होकर हमें दी है| शरणागत होकर हमें उनको इस आध्यात्मिक मार्ग पर कर्ता बनाना ही होगा|
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भगवान कहते हैं....
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज| अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः||१८:६६||
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यह एक आध्यात्मिक रहस्य है कि परमात्मा की प्राप्ति के लिए हम जो भी साधना करते हैं, उसका सिर्फ एक चौथाई भाग यानि २५% ही हमें करना पड़ता है, एक चौथाई भाग यानि २५% हमारे गुरु महाराज स्वयं हमारे साथ साथ करते हैं, और बाकी का ५०% स्वयं परमात्मा करते हैं| पर हमारा जो २५% भाग है उसका शत-प्रतिशत तो हमें करना ही पड़ता है| उसमें कोई माफी नहीं है| इतनी बड़ी छूट गुरु महाराज की कृपा से भगवान ने करुणावश होकर हमें दी है| शरणागत होकर हमें उनको इस आध्यात्मिक मार्ग पर कर्ता बनाना ही होगा|
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भगवान कहते हैं....
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज| अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः||१८:६६||
अर्थात् सब धर्मोंको छोड़कर यानी सब कर्मों का सन्यास करके, मुझ एक की ही
शरण में आ, अर्थात् परमात्मा से भिन्न कुछ है ही नहीं, ऐसा निश्चय कर| इस
प्रकार निश्चय वाले को मैं अपना स्वरूप प्रत्यक्ष करा के समस्त
धर्माधर्मबन्धनरूप पापोंसे मुक्त कर दूँगा| यह भगवान का वचन है|
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इस से पूर्व भी जो भगवान ने कहा है वह भी नित्य विचारणीय है ....
"तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत | तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम् ||१८:६२||"
"मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु| मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे ||१८:६५||"
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हमारा कोई पृथक अस्तित्व नहीं है| जो भी हैं वे मेरे परम-प्रिय परम-प्राण हैं|
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ श्री गुरवे नमः ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ फरवरी २०१९
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इस से पूर्व भी जो भगवान ने कहा है वह भी नित्य विचारणीय है ....
"तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत | तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम् ||१८:६२||"
"मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु| मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे ||१८:६५||"
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हमारा कोई पृथक अस्तित्व नहीं है| जो भी हैं वे मेरे परम-प्रिय परम-प्राण हैं|
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ श्री गुरवे नमः ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ फरवरी २०१९
जिन श्रीहरिः का नाम सारे पापों को हर लेता है उन भगवान श्रीहरिः की हम सब पूर्णतः शरणागत हों .....
ReplyDelete.
संसार से कुछ पाने की आशा या अपेक्षा, पानी से घी निकालने की आशा या अपेक्षा के बराबर है| पानी से ही घी निकल जाता तो इस संसार में रूखी-सूखी कोई नहीं खाता| गीता में भगवान कहते हैं .....
"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन| मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि||२:४७||
अर्थात हमारा अधिकार सिर्फ कर्म में ही है| कर्म करते हुए, फल में कभी अधिकार न हो| किसी भी अवस्था में हमें कर्मफल की इच्छा नहीं करनी चाहिए| यदि कर्मफल में हमारी तृष्णा होगी तो हम कर्मफल प्राप्ति के हेतु भी होंगे| अतः कर्म करने मात्र में ही हमारा अधिकार है, फल में कभी नहीं| अकर्म में भी हमारी आसक्ति न हो|
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ॐ तत्सत ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
२८ जुलाई २०१९