Saturday, 13 November 2021

इस संसार में सबसे अधिक दया का पात्र कौन है? ---

 (प्रश्न) :-- इस संसार में सबसे अधिक दया का पात्र कौन है?

(उत्तर) :-- इस संसार में दया का सबसे अधिक पात्र ब्राह्मण है।
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ब्राह्मण - कोई जाति नहीं, हिन्दू वर्ण-व्यवस्था का एक वर्ण है। ब्राह्मण का स्वधर्म ही है - भगवत्-प्राप्ति। अनेक जन्मों के पुण्यों के फलवरूप, किसी का भारतभूमि में, हिन्दू धर्म में, और ब्राह्मण कुल में जन्म होता है। ब्राह्मण कुल में जन्म होता ही है -- ब्रह्म, यानि परमात्मा को जानने के लिए। यस्क मुनि की निरुक्त के अनुसार - "ब्रह्म जानाति ब्राह्मण:" अर्थात् ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म (अंतिम सत्य, ईश्वर या परम ज्ञान) को जानता है। ब्राह्मण का अर्थ है "ईश्वर का ज्ञाता"।
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जिसने ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर भी भगवान की भक्ति नहीं की, उसकी सदगति नहीं होती। उसे अनेक कष्टप्रद योनियों में भटकने के बाद, अनेक कष्टमय जन्मों के उपरांत ही फिर से ब्राह्मण वर्ण मिलता है। इसीलिए ब्राह्मण दया का पात्र है। मेरे जैसे अनेक ब्राह्मण भटके हुए हैं जो अब होश में आ रहे हैं। अतः उन सब को जिनका जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ है, निरंतर नाम-स्मरण, और संध्या-साधना (गायत्री-जप, प्राणायाम और ध्यान) करनी ही चाहिए।
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अपना स्वधर्म (भगवत्-प्राप्ति) न छोड़ें। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कहते है --
"श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥३:३५॥"
अर्थात् -- सम्यक् प्रकार से अनुष्ठित परधर्म की अपेक्षा गुणरहित स्वधर्म का पालन श्रेयष्कर है; स्वधर्म में मरण कल्याणकारक है (किन्तु) परधर्म भय को देने वाला है॥
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श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान ने ब्राह्मण का धर्म बताया है --
"शमो दमस्तपः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च।
ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम्॥१८:४२॥"
अर्थात् -- शम, दम, तप, शौच, क्षान्ति, आर्जव, ज्ञान, विज्ञान और आस्तिक्य - ये ब्राह्मण के स्वाभाविक कर्म हैं॥
अनेक आचार्यों ने उपरोक्त श्लोक की बहुत ही विषद व्याख्या की है। विभिन्न आचार्यों के भाष्यों का स्वाध्याय करें।
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हमारे कूटस्थ में एक परम ब्रह्म-ज्योति निरंतर प्रज्ज्वलित है, और ओंकार का नाद निरंतर निःसृत हो रहा है। उसमें स्वयं का विलय करते हुए, कूटस्थ-चैतन्य यानि श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान द्वारा बताई हुई ब्राह्मी स्थिति में रहने की साधना करें। यह ब्राह्मण-धर्म है।
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उपरोक्त बातें लिखने की प्रेरणा भगवान से मिल रही थी, इसलिए उन्होने लिखवा दीं; अन्यथा मुझ अकिंचन में कोई सामर्थ्य नहीं है।
"ॐ नमो ब्रह्मण्य देवाय गोब्राह्मण हिताय च।
जगत् हिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नमः॥"
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
३ नवंबर २०२१
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पुनश्च :--- ब्रह्मचर्य ही हमें ब्राह्मण बनाता है। बिना ब्रह्मचर्य के ब्राह्मणत्व संभव नहीं है। सद्आचरण और सद् विचार भी ब्रह्मचर्य के अंतर्गत आते हैं। ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए हम नियमित गायत्रीजप, प्राणायाम और ध्यान साधना करते हुए अपने धर्म पर अडिग रहें। धर्म का पालन ही धर्मरक्षा है, और धर्म ही हमारी रक्षा कर सकता है। ॐ ॐ ॐ !!

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