अब भारत को पूर्णतः जागृत होकर उठना ही होगा ---
प्रश्न उठता है कि भारत को उठाएगा कौन? हमें ही यह कार्य करना होगा, हमें ही साधना करनी होगी। हम जहाँ पर भी हैं, और जो भी कार्य हमें भगवान ने सौंपा है, उसे पूर्ण कौशल्य और सत्यनिष्ठा से भगवान को प्रसन्न करने के लिए करना होगा। स्वयं को निमित्त मात्र बनाकर भगवान को ही कर्ता बनाना होगा। तभी हम राष्ट्र का कल्याण कर पायेंगे। स्वधर्म पर अडिग रहते हुए हम अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ करें। राष्ट्रीय चरित्र का अभाव ही भारत की एकमात्र समस्या है।
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भारत की राजनीति में -- धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद, जातिगत आरक्षण, स्वतन्त्रता, समानता, अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक, पिछड़ा-अतिपिछड़ा, आदि की सब बातें सिर्फ सत्ता में बने रहने के साधन हैं। शासक वर्ग को इन से मतलब सिर्फ सत्ता में बलात् बने रहने से है, अन्य कुछ भी नहीं। यह सब वैसे ही है जैसे लेनिन, स्टालिन, व माओ आदि के लिए साम्यवाद/मार्क्सवाद से कोई मतलब नहीं था, मतलब सिर्फ सत्ता छीनने से था।
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भारत की अस्मिता को नष्ट करने के अधिकतम प्रयास अङ्ग्रेज़ी शासन में और उस के बाद किये गये। लेकिन भारत कभी नष्ट नहीं हुआ। भारत फिर से जागृत होगा और अखंड होकर अपने परम वैभव को प्राप्त कर एक सनातन धर्मावलम्बी आध्यात्मिक राष्ट्र बनेगा। सनातन धर्म की भी पुनर्प्रतिष्ठा और वैश्वीकरण होगा। असत्य और अंधकार रूपी अधर्म का नाश होगा।
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बार-बार ये संकल्प हृदय में आते हैं कि सत्य-सनातन-धर्म की पुनर्स्थापना व वैश्वीकरण हो, और भारत माता अपने द्विगुणित परम वैभव के साथ अखंडता के सिंहासन पर बिराजमान हो। सदियों से दबाया और कुचला हुआ हिन्दू समाज सब तरह के भेदभाव व हीनता का बोध छोड़ते हुए संगठित व सक्षम हो। भारत से असत्य और अंधकार की शक्तियों का पराभव हो, व ज्ञान के आलोक से पूरा भारत ज्योतिर्मय हो| अब भारत को उठना ही होगा|
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ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१२ नवंबर २०२१
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