भगवान की जो और जैसी भी छवि मेरे समक्ष है, मैं उनके प्रति पूर्णतः समर्पित हूँ। जब से भगवान से प्रेम हुआ है, और उनकी प्रत्यक्ष अनुभूति होने लगी है, तब से सारे सिद्धान्तों और सारे दर्शन-शास्त्रों का मेरे लिए कोई महत्व अब नहीं रहा है। भगवान हैं, उनकी अनुभूति अवर्णनीय है। निरंतर उनका चिंतन सुखदायी है।
अद्वैत, विशिष्टाद्वैत, द्वैत आदि सिद्धान्त, और सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा व वेदान्त आदि दर्शन, -- सब अपने अपने स्थान पर सही हैं और भगवान की ओर संकेत करते हैं, लेकिन भगवान इन सब से ऊपर हैं। भगवान पर कोई बंधन नहीं है। गुरु रूप में मार्गदर्शन भी स्वयं भगवान ने ही किया है। अब तो वे भी मेरे साथ एक हैं। बचपन में सुने हुए एक फिल्मी गाने की एक पंक्ति याद आ रही है --
"वो पास रहें या दूर रहें, नज़रों में समाये रहते हैं।"
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एक बहुत प्यारा भजन भी है जिसे एक भक्त संत के मुंह से कई बार सुना है --
"मैं नहीं, मेरा नहीं, यह तन किसी का है दिया
जो भी अपने पास है, वह धन किसी का है दिया
जो मिला है वह हमेशा, पास रह सकता नहीं
कब बिछुड़ जाये यह कोई, राज कह सकता नहीं
जिन्दगानी का खिला, मधुवन किसी का है दिया
मैं नहीं, मेरा नहीं, यह तन किसी का है दिया
जग की सेवा खोज अपनी, प्रीति उनसे कीजिये
जिन्दगी का राज है, यह जानकर जी लीजिये
साधना की राह पर, यह साधन किसी का है दिया
मैं नहीं, मेरा नहीं यह तन किसी का है दिया
देने वाले ने दिया, वह भी दिया किस शान से
"मेरा है" यह लेने वाला, कह उठा अभिमान से
"मैं", ‘मेरा’ यह कहने वाला, मन किसी का है दिया
मैं नहीं, मेरा नहीं, यह तन किसी का है दिया
जो भी अपने पास है, वह सब किसी का है दिया
मैं नहीं, मेरा नहीं, यह तन किसी का है दिया
जो भी अपने पास है, वह धन किसी का है दिया
मैं नहीं, मेरा नहीं, यह तन किसी का है दिया"
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भगवान की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति आप सब को मेरा नमन॥
ॐ तत्सत् !!
१० नवंबर २०२१
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