यह सृष्टि भगवान की है, जिसे उनकी प्रकृति अपने नियमानुसार चला रही है। उन नियमों को न समझना हमारी अज्ञानता है। सनातन धर्म के अनुसार हमारे जीवन का सर्वप्रथम लक्ष्य भगवत्-प्राप्ति है। जब तक भगवत्-प्राप्ति नहीं होती तब तक अपने कर्मफलों को भोगने के लिए बार-बार जन्म लेते रहेंगे।
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भगवत्-प्राप्ति कैसे हो? इसके लिए भगवान से परमप्रेम (भक्ति) जागृत करना होगा, व सत्संग और स्वाध्याय करना होगा। भगवान ही एकमात्र सत्य हैं, जब सत्यनिष्ठा जागृत होती है तब भगवान किसी सद्गुरु के रूप में आकर हमारा मार्गदर्शन करते हैं।
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जब लक्ष्य परमात्मा को ही बना लिया है तब इधर-उधर न भटकें, और पूरी लगन से उन्हीं में विलीन होने की साधना करें। प्रयास करें की ध्यान इधर-उधर कहीं अन्यत्र न जाये। यह संसार तो प्रकृति के नियमों के अनुसार चलता रहेगा, जिसे हम नहीं बदल सकते। हम सिर्फ सेवा कर सकते हैं। सबसे बड़ी सेवा जो हम समष्टि के लिए कर सकते हैं, वह है "आत्म-साक्षात्कार"। "आत्म-साक्षात्कार" से कम कुछ भी हमें स्वीकार्य नहीं है। हमारा लक्ष्य भगवत्-प्राप्ति है, जिसे हम कभी भी न भूलें।
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जब भी युवावस्था में भगवान की थोड़ी सी भी झलक मिले, उसी समय विरक्त हो जाना चाहिए। कोई दो लाख में से एक व्यक्ति के हृदय में ही भगवान को पाने की ललक होती है, बाकियों के लिए तो भगवान एक साधन, और यह संसार साध्य है।युवावस्था में साधना कर के ही भगवान को प्राप्त किया जा सकता है, बुढ़ापे में नहीं। भगवान से विमुखता ही हमारे सब दुखों का कारण है। भगवान का भजन, स्मरण और गहन ध्यान नहीं करने पर बड़ी भयंकर असहनीय पीड़ा होती है।
"कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई।
जब तव सुमिरन भजन न होई॥
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और क्या लिखें ? सब कुछ तो शास्त्रों में लिखा है। महान आत्माओं, और भगवान के साथ सत्संग करें। जो भी होगा वह सही होगा। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
७ नवंबर २०२१
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