Saturday, 13 November 2021

हमें भगवान की प्रत्यक्ष उपस्थिती चाहिये ---

हमें भगवान की प्रत्यक्ष उपस्थिती चाहिये, न कि मीठी मीठी बातें या किसी भी तरह का कोई उपदेश। सत्संग भी प्रत्यक्ष भगवान का ही चाहिये, न कि उनके बारे में बात करने वालों का। हमारे हृदय की भक्ति, अभीप्सा, तड़प, और समर्पण सिर्फ भगवान के लिए है, न कि किसी अन्य के लिए।

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भगवान की भक्ति हमारा स्वधर्म है। कहते हैं -- "यतो धर्मस्ततो जयः", लेकिन जब धर्म ही नहीं रहेगा, तो जय किस की होगी? हमारा जीवन -- धर्म और अधर्म के बीच का एक युद्ध है जो सनातन काल से ही चल रहा है। भारत की सबसे बड़ी समस्या और असली युद्ध अधर्म से है, जिसे हम छल, कपट, ठगी, भ्रष्टाचार, घूसखोरी और बेईमानी कहते हैं। अन्य सब समस्यायें गौण हैं। हमारी सबसे बड़ी कमी राष्ट्रीय चरित्र का अभाव है।
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भगवान से प्रार्थना भी हम लोग अपने झूठ, कपट और बेईमानी में सिद्धि यानि अधर्म/असत्य की सफलता के लिए ही करते हैं। लोग बातें बड़ी बड़ी धर्म की करते हैं पर उन सब के जीवन में अधर्माचरण एक व्यावहारिकता और शिष्टाचार हो गया है। यह महाविनाश को आमंत्रण है। भगवान हमारी रक्षा करें।
ॐ तत्सत् !!
१२ नवंबर २०२१

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