जीवन का एक भी पल भगवान की स्मृति के बिना व्यतीत न हो। भगवान की कृपा से हरेक बाधा के मध्य कोई न कोई मार्ग निकल ही आता है। चारों ओर चाहे अंधकार ही अंधकार और मुसीबतों के पहाड़ हों, भगवान की कृपा उन अंधकारमय विकराल पर्वतों को चीर कर हमारा मार्ग प्रशस्त कर देती है। भगवान का शाश्वत् वचन है --
"मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि।
अथ चेत्वमहाङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि॥"१८:५८॥"
अर्थात् - "मच्चित्त होकर तुम मेरी कृपा से समस्त कठिनाइयों (सर्वदुर्गाणि) को पार कर जाओगे; और यदि अहंकारवश (इस उपदेश को) नहीं सुनोगे, तो तुम नष्ट हो जाओगे॥"
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पता नहीं कितने जन्मों के पश्चात इस जन्म की एकमात्र उपलब्धि यही है कि भगवान ने इस हृदय को अपना स्थायी निवास बना लिया है। इस हृदय का केंद्र तो सारी सृष्टि में व उस से परे भी सर्वत्र है, पर परिधि कहीं भी नहीं। इस हृदय में स्थित सर्वव्यापी ज्योतिर्मय भगवान स्वयं ही अपना ध्यान और उपासना करते हैं। भगवान इस हृदय में स्थायी रूप से बस गए हैं, और मुझे भी अपने हृदय में स्थान दे दिया है। इसके अतिरिक्त मुझे अन्य कुछ कभी चाहिए भी नहीं था, और कभी चाहूँगा भी नहीं।
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हे प्रभु, अपनी परम मंगलमय आरोग्यकारी उपस्थिती को सभी के अन्तःकरण में व्यक्त करो। भारत के भीतर और बाहर के सभी शत्रुओं का नाश हो। भारत अपने द्वीगुणित परम वैभव के साथ, एक सत्यनिष्ठ, अखंड, सनातन धर्मावलम्बी, आध्यात्मिक राष्ट्र बने। इस राष्ट्र में छायी हुई असत्य और अंधकार की आसुरी शक्तियों का समूल नाश हो। इस देश के सभी नागरिक सत्यनिष्ठ, राष्ट्रभक्त और उच्च चरित्रवान बनें। ॐ शांति शांति शांति॥ ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
११ नवंबर २०२१
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