पूर्णता शिव में है, जीव में नहीं ---
.
सत्य एक अनुभूति है जिसका बोध परमात्मा की कृपा से ही हो सकता है, अन्यथा नहीं। सिर्फ परमात्मा ही सत्य है, अन्य कुछ भी नहीं। अब सफलताओं और विफलताओं का मेरे लिए कोई महत्व नहीं रहा है। अब तक के सभी जन्मों में मेरी विफलतायें व सफलताएँ -- एक अवसर के रूप में आई थीं कुछ सिखाने के लिए। इस संसार में मेरे बारे में कोई क्या सोचता है, और कौन क्या कहता है, इसकी परवाह न करते हुए मैं निरंतर अपने पथ पर अग्रसर रहूँ, चलता रहूँ, चलता रहूँ, चलता रहूँ, और कहीं पर भी न रुकूँ। रुकना ही मृत्यु है जिसे मैंने पता नहीं कितने जन्मों में कितनी ही बार अनुभूत किया है। यह देह रूपी वाहन जब पुराना और जर्जर हो जाएगा, तब दूसरा मिल जाएगा। लेकिन यह यात्रा तब तक नहीं रुक सकती जब तक कि मैं अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर लूँ।
.
मेरे आदर्श - अंशुमाली, मार्तंड, भगवान भुवनभास्कर आदित्य हैं। जब वे अपनी दिव्य आभा और प्रकाश के साथ अपने पथ पर अग्रसर होते हैं, तब मार्ग में उन्हें कहीं तिमिर का किंचित कणमात्र भी नहीं मिलता। उन्हें क्या इस बात की चिंता होती है कि मार्ग में क्या घटित हो रहा है? उनकी तरह मैं भी सदा प्रकाशमान और गतिशील रहूँ। ज्योतिषांज्योति कूटस्थ की आभा निरंतर प्रज्ज्वलित रहे।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० नवंबर २०२१
No comments:
Post a Comment