किस को नमन करूँ? अन्य कोई तो है ही नहीं ...
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सांसारिकता से प्रेम एक धोखा है| वास्तविक प्रेम सिर्फ परमात्मा से ही हो सकता है| मेरी एकमात्र संपत्ति मेरे ह्रदय का प्रेम है| यह प्रेम ही मेरा स्वभाव है| यह प्रेम ही मुझे निश्चिन्त, निर्भय, निःशोक और निःशंक बना सकता है| परमात्मा को मेरा प्रेम स्वीकार है, तभी तो वे निरंतर परम ज्योतिर्मय हो कर मेरे कूटस्थ में हैं| मुझे सारी तृप्ति व संतुष्टि उन से ही मिलती है| हृदय की हर घनीभूत पीड़ा को वे ही शांत करते हैं| समस्त अस्तित्व वे ही हैं, उन से पृथकता अब और नहीं हो सकती| वे हैं, यहीं पर, इसी समय, मेरे साथ हैं, और सदा मेरे साथ ही रहते हैं, एक क्षण के लिए भी नहीं छोड़ते| जब कभी मैं उन को भूल जाता हूँ तो वे पीछे से आकर पकड़ लेते हैं और अपनी याद दिला कर छिप जाते हैं| यह खेल कई जन्म-जन्मांतरों से चल रहा है| किस को नमन करूँ? अन्य कोई तो है ही नहीं| ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ नवंबर २०२०
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