Wednesday, 12 October 2016

हम एक कण नहीं अपितु सम्पूर्ण प्रवाह हैं ....

हम एक कण नहीं अपितु सम्पूर्ण प्रवाह हैं ....
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सागर की लहरें उठती हैं, गिरती हैं, फिर उठती हैं और निरंतर प्रवाहित होती रहती हैं| उनमें अनंत कण हैं जल के| यह समस्त सृष्टि भी एक प्रवाह है| कुछ भी स्थिर नहीं है| सब कुछ गतिशील है| इसके पीछे एक अनंत ऊर्जा है| उस अनंत ऊर्जा का सतत प्रवाह ही यह सृष्टि है| वह सम्पूर्ण प्रवाह हम स्वयं ही हैं|
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हम एक कण नहीं अपितु सम्पूर्ण प्रवाह हैं| सम्पूर्ण प्रवाह ही नहीं यह महासागर भी हम स्वयं ही हैं| उसके पीछे की समस्त ऊर्जा और विचार भी हम स्वयं ही हैं|
रात्रि की नि:स्तब्धता में सृष्टि और प्रकृति का जो अनंत विस्तार दिखाई देता है, वह अनंतता भी हम ही हैं|
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दिन का प्रकाश और रात्रि का अन्धकार हम ही हैं| प्रकृति का सौंदर्य, फूलों की महक, पक्षियों की चहचहाहट, सूर्योदय और सूर्यास्त, प्रकृति की सौम्यता और विकरालता सब कुछ हम ही हैं| दुनिया की सारी भागदौड़, सारी चाहतें, अपेक्षाएँ और कामनाएँ भी हम ही हैं| सारा विस्तार हमारा ही विस्तार है|
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सर्वव्यापकता, सर्वशक्तिमता, सर्वज्ञता, सारे विचार, सारे दृश्य और सम्पूर्ण अस्तित्व ..... हम से परे कुछ भी अन्य नहीं है|
जो कुछ भी परमात्मा का है वह सब हम ही है| उस होने पर हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है| हम उसके अमृतपुत्र हैं, हम यह देह नहीं, शाश्वत आत्मा हैं|
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परमात्मा को अपने भीतर प्रवाहित होने दो| फिर उस प्रवाह में सब कुछ समर्पित कर दो| कहीं पर भी कोई अवरोध नहीं होना चाहिए| जो भी अवरोध आये उसे ध्वस्त कर दो|

परमात्मा से पृथकता ही सब दु:खों का कारण है| अन्य कोई कारण नहीं है|
उससे जुड़ाव ही आनंद है| बाकि सारी खोज एक मृगमरीचिका है जिसकी परिणिति मृत्यु है|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
October 10, 2014

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