जन्म और मृत्यु से परे ...........
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जन्म और मृत्यु से परे एक ऐसी चेतना जागृत हो जहाँ जन्म, मृत्यु और पृथकता का बोध एक स्वप्न हो जाये| जहाँ कुछ भी मुझ से पृथक ना हो, परमात्मा की पूर्णता और अनंतता ही मेरा अस्तित्व हो| मैं यह देह नहीं अपितु सर्वव्यापी परम चैतन्य हूँ| इस पृथ्वी से लाखों करोड़ों अरबों प्रकाशवर्ष दूर स्थित ऐसे नक्षत्र मंडल भी हैं, जहाँ से जब प्रकाश चला था तब पृथ्वी का अस्तित्व ही नहीं था, और जब तक उनका प्रकाश पृथ्वी तक पहुंचेगा तब तक इस पृथ्वी का अस्तित्व भी नहीं रहेगा| वे नक्षत्र मंडल और उनका प्रकाश भी मैं ही हूँ|
यह समस्त अस्तित्व मेरा घर है, यह समस्त सृष्टि मेरा परिवार है|
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हे प्रभु, हे परमशिव आप और मैं एक हैं, जो भी थोड़ी बहुत अज्ञानता और पृथकता का बोध है उसे समाप्त करो| आपकी अनंतता और पूर्णता ही मैं रहूँ|
हे जगन्माता, करुणा कर के इन अज्ञान रुपी ग्रंथियों ..... ब्रह्मग्रंथि, विष्णुग्रंथि और रूद्रग्रंथि ..... का भेदन करो|
आप ही इस देह में अवस्थित हैं| अपनी महिमा को व्यक्त करो| मैं आपकी शरणागत हूँ|
मुझे आपके परम प्रेम, ज्ञान, भक्ति, और वैराग्य के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं चाहिए|
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इस राष्ट्र भारत के भीतर व बाहर के सभी शत्रुओं का नाश करो| भारत की अस्मिता की रक्षा हो| भारतवर्ष अपने परम वैभव को प्राप्त करे|
सम्पूर्ण समष्टि का, सब प्राणियों का कल्याण हो| आपकी जय हो|
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ॐ तत्सत् | अयमात्मा ब्रह्म | तत्वमसि | सोsहं | ॐ ॐ ॐ ||
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जन्म और मृत्यु से परे एक ऐसी चेतना जागृत हो जहाँ जन्म, मृत्यु और पृथकता का बोध एक स्वप्न हो जाये| जहाँ कुछ भी मुझ से पृथक ना हो, परमात्मा की पूर्णता और अनंतता ही मेरा अस्तित्व हो| मैं यह देह नहीं अपितु सर्वव्यापी परम चैतन्य हूँ| इस पृथ्वी से लाखों करोड़ों अरबों प्रकाशवर्ष दूर स्थित ऐसे नक्षत्र मंडल भी हैं, जहाँ से जब प्रकाश चला था तब पृथ्वी का अस्तित्व ही नहीं था, और जब तक उनका प्रकाश पृथ्वी तक पहुंचेगा तब तक इस पृथ्वी का अस्तित्व भी नहीं रहेगा| वे नक्षत्र मंडल और उनका प्रकाश भी मैं ही हूँ|
यह समस्त अस्तित्व मेरा घर है, यह समस्त सृष्टि मेरा परिवार है|
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हे प्रभु, हे परमशिव आप और मैं एक हैं, जो भी थोड़ी बहुत अज्ञानता और पृथकता का बोध है उसे समाप्त करो| आपकी अनंतता और पूर्णता ही मैं रहूँ|
हे जगन्माता, करुणा कर के इन अज्ञान रुपी ग्रंथियों ..... ब्रह्मग्रंथि, विष्णुग्रंथि और रूद्रग्रंथि ..... का भेदन करो|
आप ही इस देह में अवस्थित हैं| अपनी महिमा को व्यक्त करो| मैं आपकी शरणागत हूँ|
मुझे आपके परम प्रेम, ज्ञान, भक्ति, और वैराग्य के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं चाहिए|
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इस राष्ट्र भारत के भीतर व बाहर के सभी शत्रुओं का नाश करो| भारत की अस्मिता की रक्षा हो| भारतवर्ष अपने परम वैभव को प्राप्त करे|
सम्पूर्ण समष्टि का, सब प्राणियों का कल्याण हो| आपकी जय हो|
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ॐ तत्सत् | अयमात्मा ब्रह्म | तत्वमसि | सोsहं | ॐ ॐ ॐ ||
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