Wednesday, 12 October 2016

यज्ञ ......

यज्ञ का अर्थ बहुत विस्तृत है| जैसा मैं समझ सका हूँ उसके अनुसार मेरी व्यक्तिगत मान्यता है कि ..... जो भी कार्य समष्टि के कल्याण के लिए किया जाता है, वह यज्ञ है| समष्टि के लिए सर्वश्रेष्ठ कार्य जो कोई कर सकता है वह है ..... परमात्मा से अहैतुकी परम प्रेम विकसित करने और परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पित होने का निरंतर प्रयास| यह मेरी दृष्टी में सबसे बड़ा यज्ञ है क्योंकि इसमें अपने अहं यानि मानित्व की आहुती अपने प्रियतम प्रभु को दी जाती है| जब अहं समाप्त हो जाता है तब केवल परमात्मा ही बचते हैं| यही समष्टि की सबसे बड़ी सेवा और सबसे बड़ा यज्ञ है|
ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् |
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्म समाधिना ||
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इस जीवन में माता पिता की सेवा और सम्मान प्रथम यज्ञ है| उसके बिना अन्य यज्ञ सफल नहीं होते| वे लोग भाग्यशाली हैं जिन्हें माता पिता की सेवा का अवसर मिलता है| माता पिता का तिरस्कार करने वाले से उसके पितृगण प्रसन्न नहीं होते| उसके घर में कोई सुख शांति नहीं होती और उसके सारे यज्ञ कर्म विफल होते हैं|
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इस ग्रह पृथ्वी के देवता 'अग्नि' हैं| भूगर्भ में जो अग्नि है उसी के कारण पृथ्वी पर जीवन है| उस भूगर्भस्थ अग्नि के कारण ही हमें सब प्रकार के रत्न, धातुएँ और वनस्पति प्राप्त होती हैं| इसीलिए सृष्टि में इस पृथ्वी लोक पर जहाँ हमारा वर्तमान अस्तित्व है वहाँ परमात्मा का सर्वश्रेष्ठ प्रतीक "अग्नि" ही है| उस "अग्नि" में हम समष्टि के कल्याण के लिए कुछ विशिष्ट मन्त्रों के साथ आहुतियाँ देते हैं वह यज्ञ का एक रूप है|
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एक विशिष्ट विधि द्वारा प्राण में अपान, और अपान में प्राण कि आहुतियाँ देते हैं, वह भी यज्ञ का एक रूप है| फिर प्रणव का मानसिक जप करते हुए ज्योतिर्मय नाद ब्रह्म में लय होकर अपने अस्तित्व का अर्पण करते हैं, वह भी यज्ञ है|
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परोपकार के लिए हम जो भी कार्य करते हैं वह भी यज्ञ की श्रेणी में आता है| भगवान की भक्ति भी एक यज्ञ है| परमात्मा की चर्चा "ज्ञान यज्ञ" है|
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कस्मै देवाय हविषा विधेम? हम किस देवता की प्रार्थना करें और किस देवता के लिए हवन करें, यजन करें, प्रार्थना करें? कौन सा देव है,जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा कर सके, हमको शांति प्रदान कर सके , हमें ऊँचा उठाने में सहायता दे सके? किस देवता को प्रणाम करें? ऐसा देव कौन है?
मेरी समझ से ये वे देव हैं जिन्होनें मुझ में ही नहीं, पूरी सृष्टि में स्वयं को व्यक्त कर रखा है| उन्हीं परब्रह्म का ध्यान मेरे लिए "साधना" है|
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अपने ह्रदय में परमात्मा को पाने की प्रचंड अग्नि प्रज्ज्वलित कर शिवभाव में स्थित होकर प्रणव की चेतना से युक्त होकर हर साँस में सोsहं-हंसः भाव से उस प्रचंड अग्नि में अपने अस्तित्व की आहुतियाँ देकर प्रभु की सर्वव्यापकता और अनंतता में विलीन हो जाना सबसे बड़ा यज्ञ है|
अपने सम्पूर्ण अस्तित्व का प्रभु में पूर्ण समर्पण कर उनके साथ एकाकार हो जाना ही यज्ञ कि परिणिति है|
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ॐ तत्सत् | ॐ शिव | शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर

1 comment:

  1. शाकल्य बन कर स्वयं की आहुती परमात्मा को देना ही सबसे बड़ा यज्ञ है |

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