Wednesday, 12 October 2016

आध्यात्मिक समूहों की आवश्यकता ...

आध्यात्मिक समूहों की आवश्यकता ...
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समान विचारों के आध्यात्मिक साधकों को ऐसे समूह बनाकर जो आपस में एक-दूसरे की सहायता करते हैं, साथ साथ रह कर साधना करनी चाहिए|
आधुनिक काल में पोंडिचेरी के समीप ओरोविल में श्रीअरविन्द के अनुयायियों का सामुहिक प्रयास सराहनीय है|
साधुओं की जमातें, अखाड़े और आश्रम भी इसी दिशा में किये गए सफल प्रयास हैं|
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सामुहिक साधना में लाभ यह है कि जिनके स्पंदन कमजोर होते हैं उनको अपने से अधिक सशक्त स्पंदन वाले साधकों से लाभ मिलता है| ऐसे समूहों पर माया का प्रभाव भी अधिक नहीं पड़ता| लोग एक-दूसरे की शर्म से भी आलस्य नहीं करते और नियमित साधना करते हैं|
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नेशनल जियोग्राफिक चैनेल पर आपने देखा होगा कि हिंसक प्राणी जब किसी को शिकार बनाते हैं तब पहिले तो उसे उसके समूह से अलग करते हैं, फिर उसे मार कर खा जाते हैं| अकेले साधक को माया भी इसी तरह अपना शिकार बनाती है|
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कई बार विवशता में ऐसे सहयोगी साधक नहीं मिलते तब साधक को अपने आप को निरंतर परमात्मा के साथ मानकर, परमात्मा को कर्ता बनाकर, उस भाव से साधना करनी चाहिए|
वास्तव में देखो तो गुरु महाराज और परमात्मा ही इस देह से साधना करते हैं| वे ही कर्ता हैं|
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यदि किसी नगर में एक ही परम्परा के और एक ही पद्धति के अनेक साधक हैं तो उन्हें सप्ताह में कम से कम एक बार तो सामूहिक ध्यान अवश्य ही करना चाहिए|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!

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