संसार में जिसे हम ढूंढ रहे हैं वह तो हम स्वयं ही हैं .....
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सारी दुनिया भाग रही है| एक अंतहीन भागदौड़ है|
इस सारी भागदौड़ का एक ही उद्देष्य है ..... सुख की प्राप्ति| सुख की खोज के लिए मुनष्य दिन रात एक करता है, खून पसीना बहाता है और आकाश पाताल एक करता है| सुख की खोज के लिए ही व्यक्ति धर्म-अधर्म से धन-सम्पत्ति एकत्र करता है, दूसरों का शोषण करता है और पूरा जीवन खर्च कर देता है| पर क्या वास्तव में उसे सुख मिलता है? मनुष्य जो भी मौज-मस्ती करता है वह करता है सुख के लिए| सुखी होना चाहता है आनंद के लिए| पर क्या वह कभी आनंद को पा सकता है?
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मेरा तो अनुभव यही है कि आनंद न तो बाहर है और न भीतर है|
जिस सुख और आनंद को हम बाहर और भीतर ढूंढ रहे हैं वह आनंद तो हम स्वयं ही हैं| सुख की खोज स्वयं की खोज है| बाहर और भीतर की खोज एक गुलामी यानी पराधीनता है| पराधीन व्यक्ति कभी सुखी नहीं हो सकता|
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एक आदमी ने एक बैल को रस्सी से बाँध रखा है और सोचता है की बैल उसका गुलाम है| पर जितना बैल उसका गुलाम है उतना ही वह भी बैल का गुलाम है|
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हम स्वयं आनंदस्वरूप हैं, हम सच्चिदानंद स्वरुप हैं| उस आत्म तत्व को खोजिये जिसकी कभी कभी एक झलक मिल जाती है| उस झलक मात्र में जो आनंद है, पता नहीं उसको पा लेने के बाद तो जीवन में आनंद के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं बचेगा| उस आत्म तत्व के अलावा सब कुछ दु:ख और भटकाव ही है|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!
October 10, 2013
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सारी दुनिया भाग रही है| एक अंतहीन भागदौड़ है|
इस सारी भागदौड़ का एक ही उद्देष्य है ..... सुख की प्राप्ति| सुख की खोज के लिए मुनष्य दिन रात एक करता है, खून पसीना बहाता है और आकाश पाताल एक करता है| सुख की खोज के लिए ही व्यक्ति धर्म-अधर्म से धन-सम्पत्ति एकत्र करता है, दूसरों का शोषण करता है और पूरा जीवन खर्च कर देता है| पर क्या वास्तव में उसे सुख मिलता है? मनुष्य जो भी मौज-मस्ती करता है वह करता है सुख के लिए| सुखी होना चाहता है आनंद के लिए| पर क्या वह कभी आनंद को पा सकता है?
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मेरा तो अनुभव यही है कि आनंद न तो बाहर है और न भीतर है|
जिस सुख और आनंद को हम बाहर और भीतर ढूंढ रहे हैं वह आनंद तो हम स्वयं ही हैं| सुख की खोज स्वयं की खोज है| बाहर और भीतर की खोज एक गुलामी यानी पराधीनता है| पराधीन व्यक्ति कभी सुखी नहीं हो सकता|
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एक आदमी ने एक बैल को रस्सी से बाँध रखा है और सोचता है की बैल उसका गुलाम है| पर जितना बैल उसका गुलाम है उतना ही वह भी बैल का गुलाम है|
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हम स्वयं आनंदस्वरूप हैं, हम सच्चिदानंद स्वरुप हैं| उस आत्म तत्व को खोजिये जिसकी कभी कभी एक झलक मिल जाती है| उस झलक मात्र में जो आनंद है, पता नहीं उसको पा लेने के बाद तो जीवन में आनंद के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं बचेगा| उस आत्म तत्व के अलावा सब कुछ दु:ख और भटकाव ही है|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!
October 10, 2013
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