Wednesday, 12 October 2016

विचारों के प्रति हम सजग रहें .....

विचारों के प्रति हम सजग रहें| हमारे विचार ही हमारे कर्म हैं जिनका फल भुगतना ही पड़ता है| विचार ही हमारी प्रगति या पतन के कारण हैं|
हर विचार के पीछे एक गहन ऊर्जा है जो निश्चित रूप से फलीभूत होती है| जैसा हम सोचते हैं वैसे ही हो जाते हैं|
परमात्मा का चिंतन भी एक उपासना है| उपास्य के गुण उपासक में आये बिना नहीं रहते|
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जीवन में प्रगति न करने की इच्छा, प्रमाद यानि आलस्य, और दीर्घसूत्रता यानि अपने कार्यों को कल पर टालते रहना ..... ये माया के बहुत बड़े अस्त्र हैं|
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न कश्चित् कस्यचिन्मित्रं, न कश्चित् कस्यचिद् रिपुः |
व्यवहारेण जायन्ति मित्राणि रिपवस्तथा ||
इस संसार में कोई भी न तो किसी का स्थायी मित्र होता है और न शत्रु|
सब अपना अपना हित देखते हैं| भावुकता में उठाये गए सारे कदम अंततः धोखा देते हैं| कभी भी यह नहीं मानना चाहिए कि कोई हमारा स्थायी मित्र या शत्रु है|

>>> सिर्फ परमात्मा ही हमारा स्थायी और शाश्वत मित्र है| <<<
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|| ॐ ॐ ॐ ||

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