Wednesday, 12 October 2016

मैं ज्योतिषांज्योति पूर्ण प्रकाश हूँ .....

मैं ज्योतिषांज्योति पूर्ण प्रकाश हूँ .....
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मंचस्थ निजात्मन, आप सब विभिन्न रूपों में मेरी ही निजात्मा हो| आप सब को मेरे ह्रदय का सम्पूर्ण अनंत अहैतुकी प्रेम समर्पित है|

धर्म और राष्ट्र के उत्थान के लिए आप जैसे प्रत्येक सच्चे भारतीय को अपनी दीनता और हीनता का परित्याग कर अपने निज देवत्व को जागृत करना होगा| क्षुद्रात्मा पर परिछिन्न माया के आवरण को हटाना होगा|

"आप पूर्ण प्रकाश हैं| आप ज्योतियों की ज्योति -- ज्योतिषांज्योति हो|
आपके संकल्प और दिव्य प्रकाश से ही सम्पूर्ण संसार का विस्तार हुआ है| आप कोई ख़ाक के पुतले और दीन हीन नहीं हो|"

"आप सम्पूर्ण समष्टि, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड हो| सम्पूर्ण सृष्टि ही आपका शरीर है|
आपका अभ्युदय ही सृष्टि का अभ्युदय है और सृष्टि का उत्कर्ष ही आपका उत्कर्ष है|
आपके अन्तस्थ सूर्य का प्रकाश ही एकमात्र प्रकाश, प्रकाशों का प्रकाश -- ज्योतिषांज्योति है|"
जब आप साँस लेते हो तो सम्पूर्ण सृष्टि साँस लेती है, जब आप साँस छोड़ते हो तो सम्पूर्ण सृष्टि साँस छोड़ती है| जब आप जागते हो तो सारी सृष्टि जागती है, आप सोते हो तो सारी सृष्टि सोती है| आपकी प्रगति ही सारी सृष्टि की प्रगति है|

निरंतर निदिध्यासन करते रहिये --- "मैं प्रकाशों का प्रकाश हूँ", "तत्वमसि", "सोsहं"|
आप उस ज्योतिषांज्योति से स्वयं को एकाकार कीजिये| यही आपका वास्तविक तत्व है| तब आप में कोई भय, आक्रोष और दु:ख नहीं रहेगा|

"सर्वत्र आप ही तो हो| आपका निज प्रकाश निरंतर, अविचल और शाश्वत है|
यह संसार तो छोटी मोटी तरंगों और भंवरों से अधिक नहीं है|
आप परिपूर्ण और मूर्तमान आनंद हैं|"

अपनी उच्चतर क्षमताओं को विकसित करने के लिए इसी विचार को निरंतर बल देना होगा --- "तत्वमसि, सोsहं"|| ॐ ॐ ॐ !!

= कृपा शंकर =
October 11, 2013.

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