मनुष्य को अपने सच्चिदानंद रूप में स्थित कराना ही ध्यान साधना का उद्देश्य है|
समष्टिगत परम चेतना और आत्म-तत्व दोनों एक परमात्मा ही है| बिना भक्तिभाव के ध्यान साधना में सफलता नहीं मिलती|
माता-पिता को चाहिए कि अपने छोटे बच्चों के सामने ही उन्हें अपने पास बैठाकर ध्यान साधना और भगवान की भक्ति करें| इससे बालकों में भक्ति व ध्यान के प्रति रूचि जागृत होगी और नर्सरी की कविताएँ और वर्णमाला सीखने के पहिले ही वे ध्यान करना सीख जायेंगे| इससे उनमें अति मानवीय गुणों का विकास होगा और किशोरावस्था में वे कामुकता और क्रोध से मुक्त होंगे| ऐसे बालक अति कुशाग्र और प्रतिभाशाली होंगे|
ॐ नमः शिवाय| ॐ ॐ ॐ ||
समष्टिगत परम चेतना और आत्म-तत्व दोनों एक परमात्मा ही है| बिना भक्तिभाव के ध्यान साधना में सफलता नहीं मिलती|
माता-पिता को चाहिए कि अपने छोटे बच्चों के सामने ही उन्हें अपने पास बैठाकर ध्यान साधना और भगवान की भक्ति करें| इससे बालकों में भक्ति व ध्यान के प्रति रूचि जागृत होगी और नर्सरी की कविताएँ और वर्णमाला सीखने के पहिले ही वे ध्यान करना सीख जायेंगे| इससे उनमें अति मानवीय गुणों का विकास होगा और किशोरावस्था में वे कामुकता और क्रोध से मुक्त होंगे| ऐसे बालक अति कुशाग्र और प्रतिभाशाली होंगे|
ॐ नमः शिवाय| ॐ ॐ ॐ ||
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