सारा झूठ हमें पढ़ाया जाता है| दो प्रश्न हैं जिनका सही उत्तर बड़ा शर्मनाक होगा .....
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(१) सन १९४८ ई.के भारत-पाक युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को हरा दिया था, फिर भी अधिकांश कश्मीर पकिस्तान के कब्जे में क्यों है?
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(१) सन १९४८ ई.के भारत-पाक युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को हरा दिया था, फिर भी अधिकांश कश्मीर पकिस्तान के कब्जे में क्यों है?
(२) सन १९६२ ई. में हम चीन से पराजित क्यों हुए ? हमने युद्ध से पूर्व तैयारी क्यों नहीं की? चीन के पास उस समय कोई वायुसेना नहीं थी, हमने वायुसेना का प्रयोग क्यों नहीं किया?
हमारी विश्व शांति की बड़ी बड़ी बातें, पंचशील के बड़े बड़े उपदेश और झूठा अहिंसा का दिखावा, सब किस काम आया?
मध्य कालीन भारत का इतिहास देखें तो लगता है हम में यह गलत धारणा भर गई थी कि युद्ध करना सिर्फ क्षत्रियों का काम है| यदि पूरे भारत का हिन्दू समाज एकजुट होकर आतताइयों का सामना करता तो किसी का भी साहस नहीं होता हिन्दुस्थान की ओर आँख उठाकर देखने का|
कृपा शंकर
२ अगस्त २०१८
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पुनश्चः : ----
भारत पर चीन या पाकिस्तान ने नहीं, नेहरू ने आक्रमण किया था, गान्धी की सहायता से। कश्मीर के राजा भारत में बहुत पहले से मिलना चाहते थे पर नेहरू ने अस्वीकार कर दिया कहा कि केवल शेख अब्दुल्ला ही वहां का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं (अवैध भाई)। कश्मीर में जैसे ही भारतीय सेना ने मुकाबला शुरु किया, युद्ध बन्द कर दिया। पाकिस्तान को युद्ध करने तथा ३० लाख हिन्दुओं की हत्या के लिये गान्धी ने ५५ करोड़ रुपये दिलवाये। विश्व में शान्तिदूत बनने के लिये पूरा तिब्बत चीन को सौंप दिया। तिब्बत में भी ३० लाख की हत्या करवाई। यदि वह भारत का भाग नहीं था, तो दलाई लामा और अन्य तिब्बतियों को यहां शरण क्यों दी? तिब्बत जीतने के बाद १९५९ से ही चीन का भारत पर आक्रमण आरम्भ हो गया था और उस वर्ष २० अक्टूबर को ५९ सिपाही चुशूल क्षेत्र में मारे गये थे जिनके शोक में भारत के प्रति जोले में १९६० से पुलिस शहीद दिवस मनाया जा रहा है और भारत का प्रत्येक पुलिस सिपाही यह जानता है। तब ३ वर्ष बाद क्यॊ कहा गया कि चीन ने आक्रमण किया है। चीन का आक्रमण १९५१ में ही आरम्भ हो गया था जब ब्रिटेन के प्रधान मन्त्री के लिखित आदेश पर नेहरू ने तिब्बत सौंप दिया।
साभार : श्री अरुण उपाध्याय
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https://thewire.in/.../india-has-no-tibetan-card-to-play...
२ अगस्त २०१८
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पुनश्चः : ----
भारत पर चीन या पाकिस्तान ने नहीं, नेहरू ने आक्रमण किया था, गान्धी की सहायता से। कश्मीर के राजा भारत में बहुत पहले से मिलना चाहते थे पर नेहरू ने अस्वीकार कर दिया कहा कि केवल शेख अब्दुल्ला ही वहां का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं (अवैध भाई)। कश्मीर में जैसे ही भारतीय सेना ने मुकाबला शुरु किया, युद्ध बन्द कर दिया। पाकिस्तान को युद्ध करने तथा ३० लाख हिन्दुओं की हत्या के लिये गान्धी ने ५५ करोड़ रुपये दिलवाये। विश्व में शान्तिदूत बनने के लिये पूरा तिब्बत चीन को सौंप दिया। तिब्बत में भी ३० लाख की हत्या करवाई। यदि वह भारत का भाग नहीं था, तो दलाई लामा और अन्य तिब्बतियों को यहां शरण क्यों दी? तिब्बत जीतने के बाद १९५९ से ही चीन का भारत पर आक्रमण आरम्भ हो गया था और उस वर्ष २० अक्टूबर को ५९ सिपाही चुशूल क्षेत्र में मारे गये थे जिनके शोक में भारत के प्रति जोले में १९६० से पुलिस शहीद दिवस मनाया जा रहा है और भारत का प्रत्येक पुलिस सिपाही यह जानता है। तब ३ वर्ष बाद क्यॊ कहा गया कि चीन ने आक्रमण किया है। चीन का आक्रमण १९५१ में ही आरम्भ हो गया था जब ब्रिटेन के प्रधान मन्त्री के लिखित आदेश पर नेहरू ने तिब्बत सौंप दिया।
साभार : श्री अरुण उपाध्याय
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Comment by shri Arun Upadhyay :-- भारत पर चीन या पाकिस्तान ने नहीं, नेहरू ने आक्रमण किया था, गान्धी की सहायता से। कश्मीर के राजा भारत में बहुत पहले से मिलना चाहते थे पर नेहरू ने अस्वीकार कर दिया कहा कि केवल शेख अब्दुल्ला ही वहां का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं (अवैध भाई)। कश्मीर में जैसे ही भारतीय सेना ने मुकाबला शुरु किया, युद्ध बन्द कर दिया। पाकिस्तान को युद्ध करने तथा ३० लाख हिन्दुओं की हत्या के लिये गान्धी ने ५५ करोड़ रुपये दिलवाये। विश्व में शान्तिदूत बनने के लिये पूरा तिब्बत चीन को सौंप दिया। तिब्बत में भी ३० लाख की हत्या करवाई। यदि वह भारत का भाग नहीं था, तो दलाई लामा और अन्य तिब्बतियों को यहां शरण क्यों दी? तिब्बत जीतने के बाद १९५९ से ही चीन का भारत पर आक्रमण आरम्भ हो गया था और उस वर्ष २० अक्टूबर को ५९ सिपाही चुशूल क्षेत्र में मारे गये थे जिनके शोक में भारत के प्रति जोले में १९६० से पुलिस शहीद दिवस मनाया जा रहा है और भारत का प्रत्येक पुलिस सिपाही यह जानता है। तब ३ वर्ष बाद क्यॊ कहा गया कि चीन ने आक्रमण किया है। चीन का आक्रमण १९५१ में ही आरम्भ हो गया था जब ब्रिटेन के प्रधान मन्त्री के लिखित आदेश पर नेहरू ने तिब्बत सौंप दिया।
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ReplyDeleteआचार्य चन्द्रशेखर शास्त्री
ReplyDeleteMarch 6
कई लोग अनजाने में लिख रहे हैं की अब्दुल हमीद ने पेटेंट टेक उड़ाए थे,जबकि ये सरासर झूठ है और कांग्रेस का हिन्दुओं से एक और विश्वासघात है...!
चंद्रभान साहू ने पेटेंट टेक को उड़ाए था ना की किसी अब्दुल हमीद ने...!
परमवीर चक्र भी उसी हिंदू सैनिक चंद्रभान साहू ने जीता था ना की किसी अब्दुल हमीद ने...!
बात सन् 1965 के भारत-पाक युद्ध की है...
जब अमेरिका द्वारा प्राप्त अत्याधुनिक पैटन टैंकों के बूते पाकिस्तान जीत के लिये अट्टहास कर रहा था और भारतीय सेना इन टैंकों से निपटने के लिये चिंतित थी...
इससे भी अधिक एन युद्द के वक़्त भारतीय सेना की मुस्लिम बटालियन के अधिकांश मुस्लिम सैनिकों द्वारा पाकिस्तान के खेमे में चले जाने व बाकी मुस्लिम सैनिकों द्वारा उसके समर्थन में हथियार डाले जाने से भारतीय खेमे में आत्मविश्वास की बेहद कमी व घोर निराशा थी...
उस घोर निराशा व बेहद चिंताजनक स्थिति के वक़्त आशा की किरण व पूरे युद्घ का महानायक बनकर आया था, भारतीय सेना का एक बीस वर्षीय नौजवान,सैनिक चंद्रभान साहू...(पूरा पता-- चंद्रभान साहू सुपुत्र श्री मौजीराम साहू,गांव रानीला, जिला भिवानी वर्तमान जिला चरखी दादरी हरियाणा)...
रानीला गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि सैनिक चंद्रभान साहू का शव बेहद क्षत-विक्षत व टुकड़ों में था शव के साथ आये सैनिक व अधिकारी अश्रुपूर्ण आंखों से उसकी अमर शौर्यगाथा सुना रहे थे कि किस तरह एक के बाद एक उसने अकेले पांच पैटन टैंक नष्ट कर दिये थे इसमें बुरी तरह घायल हो चुके थे और उन्हें जबरन एक तरफ लिटा दिया गया था कि आप पहले ही बहुत बड़ा कार्य कर चुके हैं,अब आपको ट्रक आते ही अन्य घायलों के साथ अस्पताल भेजा जायेगा लेकिन सैनिक चंद्रभान साहू ये कहते हुए उठ खड़े हुए कि मैं एक तरफ लेटकर युद्घ का तमाशा नहीं देख सकता, घर पर माता-पिता की बुढ़ापे में सेवा के लिये और भाई हैं, मैं अन्तिम सांस तक लडूंगा और दुश्मन को अधिकतम हानि पहुँचाऊँगा...
कोई हथियार न दिये जाने पर साक्षात महाकाल का रूप धारण कर सबके मना करते करते भी अभूतपूर्व वीरता व साहस दिखाते हुए एंटी टैंक माइन लेकर पास से गुजरते टैंक के नीचे लेटकर छठा टैंक ध्वस्त कर युद्घ में प्राणों का सर्वोच्च बलिदान कर दिया...
उनके इस सर्वोच्च व अदभुत बलिदान ने भारतीय सेना में अपूर्व जोश व आक्रोश भर दिया था व उसके बाद हर जगह पैटन टैंकों की कब्र खोद दी गई ग्रामीणों ने नई पीढ़ी को प्रेरणा देने के लिये दशकों तक उसका फोटो व शौर्यगाथा रानीला गांव के बड़े स्कूल में टांग कर रखी और आज भी स्कूल में उनका नाम लिखा हुआ बताते हैं...
बार्डर फिल्म में जो घायल अवस्था में सुनील शेट्टी वाला एंटी-टैंक माइन लेकर टैंक के नीचे लेटकर टैंक उड़ाने का दृश्य है, वो सैनिक चंद्रभान साहू ने वास्तव में किया था ऐसे रोम रोम से राष्ट्रभक्त महायोद्धा सिर्फ भारतभूमि पर जन्म ले सकते हैं...
मुस्लिम रेजिमेंट द्वारा पाकिस्तान का समर्थन करने से मुस्लिमों की हो रही भयानक किरकिरी को रोकने व मुस्लिमों की छवि ठीक रखने के लिये इंदिरा गाँधी की कांग्रेस सरकार ने परमवीर चंद्रभान साहू की अनुपम वीरगाथा को पूरे युद्घ के एकमात्र मुस्लिम मृतक अब्दुल हमीद के नाम से अखबारों में छपवा दिया व रेडियो पर चलवा दिया और अब्दुल हमीद को परमवीर चक्र दे दिया व इसका असली अधिकारी सैनिक चंद्रभान साहू गुमनामी के अंधेरे में खो गया...!!!🚩🙏