आत्मलिंग की अनुभूतियाँ .....
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आत्मलिंग की अनुभूतियाँ सिद्ध गुरु की परम कृपा से ही होती हैं| इन की एक बार अनुभूतियाँ हों तो पीछे मुड़कर न देखें और ईश्वर की साधना में जुट जाएँ| गुरुकृपा निरंतर हमारा मार्गदर्शन और रक्षा करेगी|
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(१) हमारी सूक्ष्म देह के मूलाधार से सहस्त्रार तक एक ओंकारमय शिवलिंग है| मेरुदंड में सुषुम्ना के सारे चक्र उसी में हैं| मानसिक रूप से उसी में रहते हुए परमशिव अर्थात ईश्वर की कल्याणकारी ज्योतिर्मय सर्वव्यापकता का ध्यान करें| ध्यान भ्रूमध्य से आरम्भ करते हुए सहस्त्रार पर ले जाएँ और श्रीगुरुचरणों में आश्रय लेते हुए वहीं से करें| इस शिवलिंग में स्थिति सब तरह के विक्षेपों से हमारी रक्षा करती है|
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(२) दूसरा सूक्ष्मतर शिवलिंग आज्ञाचक्र से सहस्त्रार तक उत्तर-सुषुम्ना में है| यह सर्वसिद्धिदायक है| जो उच्चतम साधक हैं वे अपनी चेतना को सदा निरंतर इसी में रखते हैं| इसमें स्थिति सिद्ध गुरु की आज्ञा और कृपा से ही होती है|
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इस से आगे की बातों की कुछ निषेधात्मक कारणों से सार्वजनिक चर्चा की अनुमति नहीं है|
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जिसके अन्दर सबका विलय होता है उसे लिंग कहते हैं| स्थूल जगत का सूक्ष्म जगत में, सूक्ष्म जगत का कारण जगत में और कारण जगत का सभी आयामों से परे .... तुरीय चेतना .... में विलय हो जाता है| उस तुरीय चेतना का प्रतीक हैं .... शिवलिंग, जो साधक के कूटस्थ में निरंतर जागृत रहता है| उस पर ध्यान से चेतना ऊर्ध्वमुखी होने लगती है|
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भगवान परमशिव दुःखतस्कर हैं| तस्कर का अर्थ होता है .... जो दूसरों की वस्तु का हरण कर लेता है| भगवन परमशिव अपने भक्तों के सारे दुःख और कष्ट हर लेते हैं| वे जीवात्मा को संसारजाल, कर्मजाल और मायाजाल से मुक्त कराते हैं| जीवों के स्थूल, सूक्ष्म और कारण देह के तीन पुरों को ध्वंश कर महाचैतन्य में प्रतिष्ठित कराते है अतः वे त्रिपुरारी हैं| वे मेरे परम आराध्य देव है|
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ॐ शिव ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२४ जुलाई २०१८
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आत्मलिंग की अनुभूतियाँ सिद्ध गुरु की परम कृपा से ही होती हैं| इन की एक बार अनुभूतियाँ हों तो पीछे मुड़कर न देखें और ईश्वर की साधना में जुट जाएँ| गुरुकृपा निरंतर हमारा मार्गदर्शन और रक्षा करेगी|
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(१) हमारी सूक्ष्म देह के मूलाधार से सहस्त्रार तक एक ओंकारमय शिवलिंग है| मेरुदंड में सुषुम्ना के सारे चक्र उसी में हैं| मानसिक रूप से उसी में रहते हुए परमशिव अर्थात ईश्वर की कल्याणकारी ज्योतिर्मय सर्वव्यापकता का ध्यान करें| ध्यान भ्रूमध्य से आरम्भ करते हुए सहस्त्रार पर ले जाएँ और श्रीगुरुचरणों में आश्रय लेते हुए वहीं से करें| इस शिवलिंग में स्थिति सब तरह के विक्षेपों से हमारी रक्षा करती है|
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(२) दूसरा सूक्ष्मतर शिवलिंग आज्ञाचक्र से सहस्त्रार तक उत्तर-सुषुम्ना में है| यह सर्वसिद्धिदायक है| जो उच्चतम साधक हैं वे अपनी चेतना को सदा निरंतर इसी में रखते हैं| इसमें स्थिति सिद्ध गुरु की आज्ञा और कृपा से ही होती है|
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इस से आगे की बातों की कुछ निषेधात्मक कारणों से सार्वजनिक चर्चा की अनुमति नहीं है|
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जिसके अन्दर सबका विलय होता है उसे लिंग कहते हैं| स्थूल जगत का सूक्ष्म जगत में, सूक्ष्म जगत का कारण जगत में और कारण जगत का सभी आयामों से परे .... तुरीय चेतना .... में विलय हो जाता है| उस तुरीय चेतना का प्रतीक हैं .... शिवलिंग, जो साधक के कूटस्थ में निरंतर जागृत रहता है| उस पर ध्यान से चेतना ऊर्ध्वमुखी होने लगती है|
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भगवान परमशिव दुःखतस्कर हैं| तस्कर का अर्थ होता है .... जो दूसरों की वस्तु का हरण कर लेता है| भगवन परमशिव अपने भक्तों के सारे दुःख और कष्ट हर लेते हैं| वे जीवात्मा को संसारजाल, कर्मजाल और मायाजाल से मुक्त कराते हैं| जीवों के स्थूल, सूक्ष्म और कारण देह के तीन पुरों को ध्वंश कर महाचैतन्य में प्रतिष्ठित कराते है अतः वे त्रिपुरारी हैं| वे मेरे परम आराध्य देव है|
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ॐ शिव ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२४ जुलाई २०१८
हमारे हृदय में और दृष्टिपथ में परमात्मा नहीं है तो हम गलत मार्ग पर अग्रसर हैं.
ReplyDeleteहर क्षण परमात्मा हमारे साथ हैं.
वे दूर नहीं हैं.
ॐ
जो परमप्रेम जागृत कर परमात्मा का बोध और परमात्मा में स्थिति कराती हो,
ReplyDeleteवही उपासना सार्थक है.
अन्य सब भटकाव हैं.
ॐ ॐ ॐ