Saturday, 14 December 2024

मुझे वीर विनायक दामोदर सावरकर पर अभिमान है ---

 मुझे वीर विनायक दामोदर सावरकर पर अभिमान है| उनसे बड़ा कोई स्वतन्त्रता सेनानी नहीं हुआ| उनके अथक प्रयासों से ही "भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम" प्रकाश में आया| यह ग्रंथ भारत के क्रांतिकारियों का संविधान था| क्रांतिकारियों को प्रेरणा इस पुस्तक से मिलती थी|

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जब वे जेल में थे तव सावरकर के मन में यह विचार आया कि हम भारतीयों के पास न तो अस्त्र-शस्त्र हैं और न ही उन्हें चलाना आता है| उनका विचार था कि अधिक से अधिक भारतीय युवक अंग्रेजों से अस्त्र-शस्त्र चलाना सीखें, उन्हीं के अस्त्र लें, और उनका मुंह उन्हीं की ओर मोड़ दें| वे सशस्त्र क्रान्ति द्वारा अंग्रेजों को भारत से भगाना चाहते थे| तब उन्होने जेल से बाहर आने का निर्णय लिया|
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उनको कुल ५० वर्ष के दो आजीवन कारावास सुना दिये गए थे| तब वह २८ साल के थे| अगर सावरकर वहाँ से जीवित लौटते तो ७८ साल के हो जाते| तब वह देश की आजादी की लड़ाई में अपना योगदान और अधिक नहीं दे पाते| उनकी मंशा थी कि किसी तरह जेल से छूटकर देश के लिए कुछ किया जाए| १९२० में उनके छोटे भाई नारायण ने महात्मा गांधी से बात की थी और कहा था कि आप पैरवी कीजिए कि कैसे भी ये छूट जाएं| गांधी जी ने खुद कहा था कि आप बोलो सावरकर को कि वह एक याचिका भेजें अंग्रेज सरकार को, और मैं उसकी सिफारिश करूंगा| गांधी ने लिखा था कि सावरकर मेरे साथ ही शांति के रास्ते पर चलकर काम करेंगे तो इनको आप रिहा कर दीजिए|
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ऐसे में याचिका की एक लाइन लेकर उसे तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता है| सावरकर को लेकर यह बहुत बड़ा भ्रम फैलाया जाता है कि उन्होंने दया याचिका दायर कर अंग्रेजों से माफी मांगी थी| सच तो यह है कि ये कोई दया याचिका नहीं थी, ये सिर्फ एक याचिका थी| जिस तरह हर राजबंदी को एक वकील करके अपना मुकदमा लड़ने की छूट होती है उसी तरह सारे राजबंदियों को याचिका देने की छूट दी गई थी| वे एक वकील थे, उन्हें पता था कि जेल से छूटने के लिए कानून का किस तरह से इस्तेमाल कर सकते हैं|
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द्वितीय विश्व युद्ध के समय उन्होने हजारों युवकों को सेना में भर्ती करवाया| नेताजी सुभाष बोस को आज़ाद हिन्द फौज गठित करने की प्रेरणा उन्हीं ने दी| द्वितीय विश्व युद्ध ने अंग्रेजों की कमर तोड़ दी थी| वीर सावरकर की योजना काम आई| सभी भारतीय सिपाहियों ने अंग्रेज़ अधिकारियों के आदेश मानने बंद कर दिये| अंग्रेजों के विरुद्ध भारतीय नौसेना का विद्रोह हुआ और मुंबई के कोलाबा में अंग्रेज़ अधिकारियों को बंद कर उनके चारों ओर बारूद बिछा दी गई| अंग्रेज़ लोग आज़ाद हिन्द फौज से, क्रांतिकारियों से और विद्रोही भारतीय सिपाहियों से बहुत अधिक डर गए थे| इसी कारण उन्होने भारत छोडने का निर्णय लिया| जाते जाते वे भारत का जितना अधिक अहित कर सकते थे, उतना किया| यहाँ यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि वे शांतिपूर्ण तरीके से चरखे से डर कर नहीं गए थे|
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वीर सावरकर की माँ ने बहुत बड़े पुण्य किए होंगे जो उनकी कोख से एक ऐसे महान बालक का जन्म हुआ| ऐसे महान बालक मधु-बालाओं (बार-बालाओं) के यहाँ पैदा नहीं होते| भारत माता की जय| वंदे मातरम् ||

१५ दिसंबर २०१९

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