Saturday, 14 December 2024

सम्पूर्ण व अहैतुकी समर्पण ---

 सम्पूर्ण व अहैतुकी समर्पण ---

.
किसी भी तरह की कोई शिकायत, आलोचना और निंदा करने के लिए मेरे पास इस समय अब कोई विषय नहीं है। पुरुषोत्तम (भगवान) स्वयं ही यह सृष्टि बन गये हैं, और प्रकृति (जगन्माता, भगवती) अपने हिसाब से अपने नियमानुसार इस सृष्टि का संचालन कर रही है। प्रकृति ही इस सृष्टि की प्राण और चैतन्यता है। उसके नियमों को न समझना हमारी अज्ञानता है।
.
मैं हिमालय से भी बड़ी बड़ी अपनी कमियों और अति अल्प व सीमित क्षमताओं को पहिचानता हूँ। जगन्माता के विराट कृपासिन्धु में मेरी कमियाँ कुछ छोटे-मोटे कंकर-पत्थरों से अधिक बड़ी नहीं हैं। वे वहाँ भी शोभा दे रही हैं। मेरे में इतनी क्षमता नहीं है कि उन्हे स्वयं से दूर कर सकूँ। भगवान को पाने की सामर्थ्य भी मुझमें नहीं है। अतः जैसा और जो कुछ भी सामान मेरे पास है, उसे साथ लेकर स्वयं को भी भगवान के श्रीचरणों में विलीन कर रहा हूँ।
.
मेरी चेतना में मेरे समक्ष इस समय स्वयं भगवान वासुदेव श्रीकृष्ण बैठे हैं, और पृष्ठभूमि में भगवती महाकाली खड़ी हैं। महाकाली सारे कर्मों को श्रीकृष्ण समर्पण कर रही हैं। अब और बचा भी क्या है? मेरी यह आभासीय चेतना भी उनमें विलीन हो जाये।
ॐ स्वस्ति !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१५ दिसंबर २०२३

No comments:

Post a Comment