Saturday, 14 December 2024

मजहबी उन्माद यानि Religious fanaticism का एकमात्र कारण deviant sexual thoughts and behavior है ---

 मजहबी उन्माद यानि Religious fanaticism का एकमात्र कारण deviant sexual thoughts and behavior है ---

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अपनी वासनाओं को छिपाने के लिए मनुष्य मजहबी उन्मादी या Religious fanatic बन जाता है। यह मेरा अवलोकन है। बड़ी बड़ी धार्मिक बातें और धर्म का प्रचार-प्रसार तभी किया जाना चाहिए जब समाज में उपयुक्त वातावरण हो। मैं श्रीमद्भगवद्गीता और आध्यात्मिकता पर मूलभूत लेख लिखता हूँ, लेकिन पता नहीं उसका कुछ लाभ होता भी है या नहीं। लगता है यह एक धार्मिक मनोरंजन मात्र होकर रह गया है।
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अगर वास्तविकता में कुछ आध्यात्मिकता है तो मुझे उतना समय श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार एकांत में परमात्मा के ध्यान में व्यतीत करना चाहिए। मैं जो लिखता हूँ, यह मेरा परमात्मा के साथ सत्संग है। कोई अन्य इसका लाभ उठाए या न उठाए, मैं तो पूर्ण रूपेण लाभान्वित हूँ। मैं किसी अन्य के लिए नहीं, स्वयं के लिए ही लिख रहा हूँ। मैं जो कुछ भी लिखता हूँ, उसका चिंतन/मनन/स्वाध्याय भी खूब करता हूँ।
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गीता के क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग में भगवान कहते हैं --
"इच्छा द्वेषः सुखं दुःखं सङ्घातश्चेतनाधृतिः।
एतत्क्षेत्रं समासेन सविकारमुदाहृतम्॥१३:७॥
अमानित्वमदम्भित्वमहिंसा क्षान्तिरार्जवम्।
आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्मविनिग्रहः॥१३:८॥
इन्द्रियार्थेषु वैराग्यमनहङ्कार एव च।
जन्ममृत्युजराव्याधिदुःखदोषानुदर्शनम्॥१३:९॥
असक्तिरनभिष्वङ्गः पुत्रदारगृहादिषु।
नित्यं च समचित्तत्वमिष्टानिष्टोपपत्तिषु॥१३:१०॥"
मयि चानन्ययोगेन भक्तिरव्यभिचारिणी।
विविक्तदेशसेवित्वमरतिर्जनसंसदि॥१३:११॥
अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं तत्त्वज्ञानार्थदर्शनम्।
एतज्ज्ञानमिति प्रोक्तमज्ञानं यदतोन्यथा॥१३:१२॥
ज्ञेयं यत्तत्प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वाऽमृतमश्नुते।
अनादिमत्परं ब्रह्म न सत्तन्नासदुच्यते॥१३:१३॥
सर्वतः पाणिपादं तत्सर्वतोऽक्षिशिरोमुखम्।
सर्वतः श्रुतिमल्लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति॥१३:१४॥
सर्वेन्द्रियगुणाभासं सर्वेन्द्रियविवर्जितम्।
असक्तं सर्वभृच्चैव निर्गुणं गुणभोक्तृ च॥१३:१५॥
बहिरन्तश्च भूतानामचरं चरमेव च।
सूक्ष्मत्वात्तदविज्ञेयं दूरस्थं चान्तिके च तत्॥१३:१६॥
अविभक्तं च भूतेषु विभक्तमिव च स्थितम्।
भूतभर्तृ च तज्ज्ञेयं ग्रसिष्णु प्रभविष्णु च॥१३:१७॥"
ज्योतिषामपि तज्ज्योतिस्तमसः परमुच्यते।
ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्यं हृदि सर्वस्य विष्ठितम्॥१३:१८॥"
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Note :-- मैंने तो इसके भावार्थों का खूब स्वाध्याय किया है। यदि आपमें सच्ची जिज्ञासा है तो स्वयं इसके अर्थों का किसी अच्छे भाष्य में स्वाध्याय कीजिये। या फिर रहने दीजिये और मुझे अमित्र कर दीजिये। जब तक जगन्माता इस शरीर में प्राण-तत्व के रूप में बिराजमान हैं, मैं इस जन्म के अंतिम समय तक सिर्फ परमात्मा का ही चिंतन, मनन, और ध्यान करूंगा। भगवान ही मुझसे यह सब लिखवा रहे हैं। वे ही मेरी शक्ति और प्रेरणा हैं।
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आप सब में परमात्मा को नमन करता हूँ। मेरा एकमात्र संबंध परमात्मा से है, और परमात्मा की प्रेरणा से ही यह सब लिखा है। परमात्मा के सिवाय अन्य किसी से भी मेरा कुछ लेना-देना नहीं है।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ दिसंबर २०२२

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