सूक्ष्म जगत के हमारे विराट और अनंत अस्तित्व के पीछे हमारी निरंतर गतिशील विस्तृत हो रही प्राण-चेतना है। वह प्राण-चेतना ही जगन्माता हैं, जिन्हें हम भगवती भी कह सकते हैं। सारे रूप और गुण उन्हीं के हैं।
यह प्रकाशमय विराट अनंतता व उससे परे का सम्पूर्ण अस्तित्व परमशिव है, जो हम स्वयं हैं। सारी साधना तो प्राण-तत्व के रूप में भगवती स्वयं कर रही है, जिसके हम साक्षी मात्र हैं। हम निरंतर परमशिव की चेतना में रहें -- यही साधना/उपासना है। इससे अतिरिक्त और कहने को कुछ भी इस समय नहीं है। यही सार है, जो भगवत्-कृपा से समझ में आ जाये तो ब्रह्मज्ञान है।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ दिसंबर २०२३
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पुनश्च: --- प्राण-तत्व और आकाश-तत्व क्या हैं? परमात्मा का जो मातृरूप है, वह प्राण-तत्व है, जिससे सारी सृष्टि चैतन्य है। परमात्मा का जो सर्वव्यापक अनंत विराट पुरुष रूप है, वह आकाश-तत्व है। प्रत्येक जीव में महाशक्ति कुंडलिनी प्राण तत्व का ही घनीभूत रूप है। ध्यान के समय कूटस्थ सूर्यमंडल में आभासित पुरुषोत्तम ही पुरुष हैं। परमशिव भी वे ही हैं।
श्रीराधाजी प्राण हैं, और श्रीकृष्ण पुरुष ॥
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