Sunday 11 June 2017

ध्यान करो, मन ध्यान करो, गुरु के वचन का ध्यान करो .......

ध्यान करो, मन ध्यान करो, गुरु के वचन का ध्यान करो .......
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जो हमारे माध्यम से साँस ले रहा है, वह परमात्मा ही है |
जो हमारी आँखों से देख रहा है वह परमात्मा ही है |
जो हमारे ह्रदय में धड़क रहा है वह परमात्मा ही है |
जो हमारे माध्यम से सोच विचार कर रहा है वह परमात्मा ही है |
जो इस देह की सारी क्रियाओं का संचालक है, वह परमात्मा ही है |
जो हमारा प्राण और अस्तित्व है, वह परमात्मा ही है |
जो हमारा प्रेम और आनंद है, वह परमात्मा ही है |
जो कुछ भी हमारा है वह परमात्मा ही है |
हम तो कुछ हैं ही नहीं, सब कुछ तो परमात्मा ही है |
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उस परमात्मा के एक उपकरण मात्र बन जाओ |
उसे स्वयं में प्रवाहित होने दो |
उठते, बैठते, सोते, जागते और सर्वदा उसी के चैतन्य में रहो |
उसे अपना सब कुछ अर्पित कर दो |
कुछ भी बचा कर अपने पास न रखो |
हर साँस पर उसका नाम हो, हर साँस उसी की है, वो ही तो साँस ले रहा है |
वह ही हमारे माध्यम से यह जीवन जी रहा है |
वह ही इस जीवन का एकमात्र कर्ता है |
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सारा प्रेम उसी को दे दो, अपना सारा अस्तित्व उसी को समर्पित कर दो |
उससे पृथकता उसके प्रति परम प्रेम को व्यक्त करने के लिए ही है |
सार की बात यह है कि परमात्मा के एक उपकरण मात्र बन कर परमात्मा को अपना स्वयं का ध्यान करने दो |
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हम कुछ पाने के लिए परमात्मा का ध्यान नहीं कर रहे है, बल्कि उसका दिया सब कुछ उसी को बापस लौटाने के लिए कर रहे हैं, हमें उसी को उपलब्ध होना है क्योंकि हम उसे प्रेम करते हैं |
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उसी के प्रेम में मत्त, स्तब्ध और आत्माराम (आत्मा में रमण करने वाला) हो जाओ |
उस की चेतना में स्वयं को विसर्जित कर दो |
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गुरु रूप में उन्होंने ही ऐसा करने का आदेश दिया है | यह गुरु का आदेश और उपदेश है | कौन क्या कहता है और क्या सोचता है इस का कोई महत्व नहीं है |
हम गुरु और परमात्मा की दृष्टी में क्या हैं, महत्व सिर्फ इसी का है|
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ॐ श्रीगुरवे नमः | ॐ श्रीपरमात्मने नमः | ॐ शिव | ॐ ॐ ॐ ||
कृपाशंकर
07June 2016

3 comments:

  1. ध्यान से पूर्व की एक धारणा .....
    पूरा ब्रह्मांड मेरा शरीर है | मैं श्वास लेता हूँ तो सारा ब्रह्मांड श्वास लेता है |
    मैं सभी प्राणियों का प्राण हूँ | मेरे हृदय की धड़कन समस्त सृष्टि की धड़कन है| ॐ ॐ ॐ ||

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  2. धीरे धीरे हम एक अच्छे भविष्य में जा रहे हैं| काल की गति ऊर्ध्वमुखी है| दिन प्रतिदिन हमारी उन्नति हो रही है जिसका हमें आभास नहीं हो रहा है| अब आने वाला हर दिन बीते हुए दिन से अच्छा होगा|

    हमारा आज का दिन बीते हुए कल से अच्छा होगा| हर दिन पहले दिन से अच्छा होगा| मैं इस बारे में पूरी तरह आश्वस्त हूँ| ॐ ॐ ॐ ||

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  3. एकमात्र अस्तित्व परमात्मा का है जो अपरिभाष्य है ......

    परमात्मा किसी भी तरह के ज्ञान की सीमा से परे है, हम उन्हें किसी भी तरह के ज्ञान में नहीं बाँध सकते क्योंकि वे रूप, रस, गंध, शब्द और स्पर्श से परे होने के कारण बुद्धि द्वारा अगम्य हैं| सिर्फ वेद ही प्रमाण है, बाक़ी सब अनुमान है| एकमात्र अस्तित्व भी सिर्फ परमात्मा का ही है जिनकी अनुभूति उनकी कृपा से ही हो सकती है| ॐ ॐ ॐ ||

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