Thursday 8 September 2016

(1) हर पल एक उत्सव है ..... (2) शिवमय होकर शिव का ध्यान करो .....

(1) हर पल एक उत्सव है .....
(2) शिवमय होकर शिव का ध्यान करो .....
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(1) किसी भी शुभ कार्य के लिए हर पल एक शुभ मुहूर्त होता है| सबसे शुभ कार्य है ..... परमात्मा का ध्यान| उसके लिए हर पल शुभ है| परमात्मा के स्मरण के लिए कोई देश-काल या शौच-अशौच का बंधन नहीं है| निरंतर परमात्मा का स्मरण रहे| जब भूल जाओ तब याद आते ही फिर स्मरण में रखने का प्रयास करो| किसी भी अन्य तथाकथित शुभ पल की प्रतीक्षा मत करो|
>>>हर साँस के आने-जाने व जाने-आने के मध्य का क्षण एक संधि-क्षण होता है जो सर्वाधिक शुभ समय होता है| उस समय परमात्मा का स्मरण रहना चाहिए|<<<
>>>योगियों के अनुसार जब दोनों नासिका छिद्रों से साँस चल रही हो वह समय सर्वश्रेष्ठ है, उस समय परमात्मा का ध्यान सिद्ध होता है| उस समय का उपयोग परमात्मा के ध्यान के लिए ही करना चाहिए|<<<
हर क्षण शुभ है, हर दिन शुभ है, हर पल और हर दिन एक उत्सव है| हर दिन होली है और हर रात दिवाली है, दूसरे शब्दों में हर दिन नववर्ष है और हर रात क्रिसमस है|
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वह कौन है जो हमारे में साँस ले रहा है? यदि आप ले रहे हैं तो साँस बंद कर के दिखाओ| यह परमात्मा ही है जो हर प्राणी में साँस ले रहा है, और हर जीव को जीवंत रखे हुए है| अतः उसके स्मरण और उसके प्रेम में व्यतीत किया हुआ जीवन ही सार्थक है| जो भी क्षण परमात्मा की स्मृति में, उनके स्मरण में लिकल जाए वह ही शुभ और सर्वश्रेष्ठ है, बाकी समय विराट मरुभूमि की रेत में गिरे जल की कुछ बूंदों की तरह निरर्थक है|
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(2) निरंतर अपने शिव-स्वरुप का ध्यान करो| शिवमय होकर शिव का ध्यान करो| पवित्र देह और पवित्र मन के साथ, एक ऊनी कम्बल पर कमर सीधी रखते हुए पूर्व या उत्तर की ओर मुँह कर के बैठ जाओ| भ्रूमध्य में भगवान शिव का ध्यान करो| वे पद्मासन में शाम्भवी मुद्रा में बैठे हुए हैं, उनके सिर से ज्ञान की गंगा प्रवाहित हो रही है, और दसों दिशाएँ उनके वस्त्र हैं| धीरे धीरे उनके रूप का विस्तार करो| आपकी देह, आपका कमरा, आपका घर, आपका नगर, आपका देश, यह पृथ्वी, यह सौर मंडल, यह आकाश गंगा, सारी आकाश गंगाएँ, और सारी सृष्टि व उससे परे भी जो कुछ है वह सब शिवमय है| उस शिव रूप का ध्यान करो| वह शिव आप स्वयं हो| आप यह देह नहीं बल्कि साक्षात शिव हो| बीच में एक-दो बार आँख खोलकर अपनी देह को देख लो और बोध करो कि आप यह देह नहीं हो बल्कि शिव हो| उस शिव रूप में यथासंभव अधिकाधिक समय रहो| सारे ब्रह्मांड में ओंकार की ध्वनी गूँज रही है, उस ओंकार की ध्वनी को निरंतर सुनो| हर आते आती जाती साँस के साथ यह भाव रहे कि मैं "वह" हूँ .... "हँ सः" या "सोsहं" | यही अजपा-जप है, यही प्रत्याहार, धारणा और ध्यान है| यही है शिव बनकर शिव का ध्यान, यही है सर्वोच्च साधना|
यह साधना उन्हीं को सिद्ध होती है जो निर्मल, निष्कपट है, जिन में कोई कुटिलता नहीं है और जो सत्यनिष्ठ और परम प्रेममय हैं| उपरोक्त का अधिकतम स्वाध्याय करो| भगवान परमशिव की कृपा से आप सब समझ जायेंगे|
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भगवान परमशिव सबका कल्याण करेंगे| अपने अहंकार का, अपने अस्तित्व का, अपनी पृथकता के बोध का उनमें समर्पण कर दो|
ॐ तत्सत् ॐ शिव ! ॐ ॐ ॐ !!

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