Monday, 20 January 2025

अपने अस्तित्त्व की रक्षा के लिये हमें भगवान् की शरण लेकर समर्पित होना ही पड़ेगा, अन्यथा नष्ट होने के लिये तैयार रहें ---

अपने अस्तित्त्व की रक्षा के लिये हमें भगवान् की शरण लेकर समर्पित होना ही पड़ेगा, अन्यथा नष्ट होने के लिये तैयार रहें ---

समर्पण का अर्थ है -- हम अपनी पृथकता के बोध को मिटाकर, भगवान को अपने जीवन का कर्ता बनायें| राष्ट्र के और हमारे साथ हो रहे वर्तमान नकारात्मक घटनाक्रमों की पृष्ठभूमि में बड़ी दुर्धर्ष आसुरी शक्तियाँ हैं, जिन से मनुष्य अपने बल पर नहीं लड़ सकता| उसे दैवीय सहायता की आवश्यकता है| एक ब्रह्मतेज हमें चाहिये, जिसके लिये हम स्वयं के शिवत्व को प्रकट करें| हमारा जीवन और हमारी साधना हमारे इस भौतिक देह की सुविधा या व्यक्तिगत मुक्ति के लिये नहीं, बल्कि "आत्म-साक्षात्कार" के लिये है|
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भगवान का शाश्वत वचन है --
"मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि| अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि||१८:५८||"
अर्थात् मच्चित्त होकर तुम मेरी कृपा से समस्त कठिनाइयों (सर्वदुर्गाणि) को पार कर जाओगे; और यदि अहंकारवश (इस उपदेश को) नहीं सुनोगे, तो तुम नष्ट हो जाओगे||
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"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज| अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः||१८:६६||"
अर्थात् सब धर्मों का परित्याग करके तुम एक मेरी ही शरण में आओ, मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम शोक मत करो||
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सारी क्रियाएँ तो जगन्माता स्वयं सम्पन्न कर के यज्ञरूप में परमात्मा को अर्पित करती है| कर्ताभाव एक भ्रम है| हम केवल उस यजमान की तरह हैं जो यज्ञ को संपन्न होते हुए देखता है, और जिस की उपस्थिति यज्ञ की प्रत्येक क्रिया के लिये आवश्यक है|
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जो लोग भगवान से कुछ माँगते हैं, उन्हें वे वही चीज़ देते हैं जो वे माँगते हैं| परन्तु जो अपने आप को दे देते हैं और कुछ भी नहीं माँगते उन्हें भगवान अपना सब कुछ दे देते हैं| न केवल कर्ताभाव, कर्मफल आदि बल्कि कर्म तक भगवान को समर्पित कर दो| साक्षीभाव या दृष्टाभाव तक भी उन्हें समर्पित कर दो| साध्य भी वे हैं, साधक भी वे हैं और साधना भी वे ही है| यहाँ तक कि दृष्य, दृष्टी और दृष्टा भी वे ही हैं| ॐ तत्सत् ||
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"ॐ सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै| तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै||"
"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते| पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते||"
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय| हर हर महादेव| ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२१ जनवरी २०२१

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