धन्य हैं वे सब भजनानंदी, जो भगवान का दिन-रात निरंतर भजन करते हैं ---
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जिन्होंने अपने अंतःकरण, अपनी इंद्रियों व उनकी तन्मात्राओं पर विजय प्राप्त कर ली है, उन सब भजनानंदियों को मैं नमन करता हूँ। वे दिन-रात भगवान का भजन करते हैं। मैं तो उनके चरणों की धूल हूँ। मैं उन्हें शत शत नमन करता हूँ। बहुत जन्मों के पुण्यफलों से मुझे यह मनुष्य शरीर मिला था, जिस से आत्मज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। देवताओं को भी यह दुर्लभ है। लेकिन मैंने तो इसका दुरुपयोग ही किया है। अभी भी अनेक कमियाँ मुझ में हैं, जो भगवान की कृपा से ही दूर होंगी। वीतरागता और स्थितप्रज्ञता कहीं दिखाई नहीं दे रही हैं। उन का प्रादुर्भाव हरिःकृपा से ही होगा। सारे जप-तप, ध्यान आदि, और यह जीवन भी तभी सार्थक होगा। मेरा विवेक भी इस समय ढंग से काम नहीं कर रहा है।
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भगवान से प्रार्थना है कि कभी तो इधर भी अपनी कृपा-दृष्टि डालें। सारी दुनियाँ का उद्धार हो रहा है, केवल मैं ही बचा हूँ। क्या सबसे अंत में ही मेरा उद्धार होगा? आज नहीं तो कल, भगवान को आना तो पड़ेगा ही। तब तक प्रतीक्षा नहीं कर सकता। मेरे पास न तो वैराग्य है, न शम, दम, उपरति , तितिक्षा, समाधान और श्रद्धा। जिस दिन उन की अनुकंपा होगी, उस दिन ये सब आ जायेंगे।
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ब्रह्मविद्या के प्रथम आचार्य भगवान सनत्कुमार ने भूमाविद्या का जो ज्ञान अपने प्रिय शिष्य देवर्षि नारद को दिया था, उसमें उन्होंने प्रमाद को ही मृत्यु बताया है। लेकिन मेरे यहाँ तो प्रमाद रूपी महिषासुर का ही राज्य चल रहा है। पता नहीं, भगवती कब उसका संहार करेगी? अपने अच्युत स्वरूप को भूलकर च्युत हो गया हूँ। आवरण और विक्षेप नाम की दो भयानक राक्षसियाँ मेरे समक्ष सशस्त्र बैठी हैं। उनका साथ देने दीर्घसूत्र नाम का एक भयावह राक्षस भी आ गया है। भ्रामरी-गुफा में ये मुझे प्रवेश नहीं करने दे रहे। कैसे भी इनको चकमा देकर इन से पार जाना है।
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इन सब बाधाओं को पार कर चुके ब्रह्मस्वरूप सभी भजनानंदियों को मैं बारंबार शत्-शत् नमन करता हूँ। वे धन्य हैं, वे धन्य हैं, वे धन्य हैं। मैं उन्हीं का अनुसरण कर रहा हूँ।
हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे॥
हरिः ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१९ जनवरी २०२५
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