आध्यात्म और भक्ति में भगवान से अन्य कुछ प्राप्ति की कामना/भावना हमारी अज्ञानता है। हमारा उद्देश्य केवल भगवत्-प्राप्ति है, न कि कुछ और ---
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सारी आध्यात्मिक साधनाएँ एक बहाना है, जैसे बच्चे के हाथ में खिलौना। जब बालक रोता है, तब माता उसके हाथ में एक खिलौना पकड़ा देती है। जो बालक खिलौने से संतुष्ट हो जाता है, माता उसकी ओर ध्यान नहीं देती। खिलौने से संतुष्ट नहीं होने पर ही माता उसे अपनी गोद में लेती है। यही बात भगवान के साथ है। भगवान हमारी माता भी हैं।
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हमारा एकमात्र लक्ष्य भगवत्-प्राप्ति है, न कि कुछ और। इसे समर्पण द्वारा ही प्राप्त कर सकते हैं, न कि किसी अन्य विधि से। भगवान से अतिरिक्त कुछ अन्य की कामना एक व्यापार है, न कि भक्ति। हमारा कल्याण व कृतकृत्यता हरिःकृपा पर निर्भर है, न कि किसी साधना पर। भगवान हमारे प्रेम और सत्यनिष्ठा से ही प्रभावित होते हैं, बाकी सब हमारा मिथ्या अहंकार है। जीवन का हर पल परमात्मा को निरंतर समर्पित हो। मृत्यु इस देह की होती है, न कि शाश्वत आत्मा की। हम एक शाश्वत आत्मा हैं, न कि यह शरीर। हमारा अस्तित्व परमात्मा की अभिव्यक्ति है। हमारे सारे गुण-दोष, संचित व प्रारब्ध कर्मफल, और सर्वस्व परमात्मा को समर्पित हैं। हमारा एकमात्र संबंध परमात्मा से है। परमात्मा से हमारा कोई पृथक अस्तित्व नहीं है। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१८ जनवरी २०२५
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