Monday 5 September 2016

लोक देवता गौरक्षक वीर तेजाजी ........

लोक देवता गौरक्षक वीर तेजाजी ........
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राजस्थान में अनेक वीरों को आज भी लोक देवता के रूप में पूजा जाता है| इनमें प्रमुख हैं ---- पाबूजी, गोगाजी, रामदेवजी, तेजाजी, हडबुजी और महाजी| इन सब ने धर्मरक्षार्थ बड़े भीषण युद्ध किये और कीर्ति अर्जित की|
कुछ दिनों पूर्व गोगानवमी पर वीर गोगा जी (गोगा राव चौहान) पर प्रस्तुति दी थी जिसमें बताया था कि किस तरह उन्होंने सोमनाथ मंदिर के विध्वंश के लिए जा रहे महमूद गज़नवी का मार्ग अवरूद्ध कर दिया था और धर्म रक्षार्थ उससे युद्ध करते हुए अपना बलिदान दिया|
आज तेजा दशमी पर तेजा जी पर यह प्रस्तुति देकर बता रहे हैं कि अपने वचन और गौ रक्षा के लिए उन्होंने अपना बलिदान दिया और लोक देवता बने|
ग्याहरवीं सदी के अंत का समय था| उत्तर पश्चिम भारत में नागवंशियों के छोटे बड़े शासन थे| ये लोग ‘नाग देवता’ को अपने वंश का प्रतीक मानते थे, जैसे अन्य शासक सूर्य, चन्द्र या मीन को मानते थे| इनमें चौहान, परिहार, परमार, सांखला, तंवर, गहलोत आदि प्रमुख थे| लेकिन बड़े ही लोकतांत्रिक ढंग से ये शासन चलते थे| राजा भी सामान्य जन की तरह काम करता था| पद योग्यता के आधार पर समाज द्वारा दिया जाता था और सम्मान का सूचक था| जरूरत पड़ने पर राजा के नेतृत्व में लड़ाई लड़ी जाती थी| कभी कई समूह मिलकर लड़ते थे| और कभी कभी ये समूह आपस में भी लड़ लेते थे|
बाद में जब सुल्तानी शासन आया तो कई नागवंशी शासकों ने वचन के कारण राज छोड़ दिया और कृषि व अन्य कार्य करने लग गए| इनमें से आज अधिकतर जाट कहलाते हैं| नागौर जिले का नाम इन्हीं नागवंशियों के शासन के कारण है जो आज भी उस शासन की याद दिलाता है|
नागवंशी शासन के समय में नागौर के पास खरनाल के शासक ताहड़ देव चौहान (धोलिया) के घर तेजाजी अवतरित हुए| यह विक्रम सम्वत 1130 थी और दिन था, मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष चतुर्दशी का| छः भाइयों में सबसे छोटे तेजाजी ही थे|
वैसे तेजाजी शिवभक्त थे और गाँव के शिव मंदिर में घंटों ध्यान करते थे|
बड़े होने पर तेजाजी को मां ने हल जोतने का कहा तो वे ना नुकुर करते रहे और कहते रहे कि उनकी अभी खेलने कूदने की उम्र है| पर मां की जिद के आगे उन्हें खेत जोतने जाना पड़ा| मां का कहना था कि तेजाजी के हाथ से बोये जाने पर खेत में मोती पैदा हो जायेंगे| आज भी उसी विश्वास के साथ किसान तेजाजी के नाम से खेती प्रारंभ करता है|
तेजाजी का विवाह बचपन में ही हो गया था| कार्तिक पूर्णिमा के पुष्कर के मेले में ही सगाई हुई और विवाह भी हो गया| उनके ससुर अजमेर जिले के रूपनगढ़ के पास पनेर के शासक थे| वे झांझर गोत्र के थे| पर बाद में किसी बात को लेकर दोनों परिवारों में अनबन हो गई थी| इस कारण गौना नहीं हुआ था|
तेजाजी ने तय किया कि वे अब किसी भी हाल में पेमल को लेकर आयेंगे| वे पहले बहन राजल को लेकर आये और फिर पंडित जी से मुहूर्त पूछने गए तो उन्होंने समय प्रतिकूल बताया| कई दूसरे अपशगुन भी हुए पर तेजाजी इन सबकी अनदेखी करते हुए पनेर अपनी प्रिय घोड़ी लीलण पर सवार होकर चल दिए| बारिश का समय था और बहते नदी नाले सामने थे पर लीलण अपने सवार को पनेर की सरहद तक ले ही गई|
पनेर के पनघट पर तेजाजी जब महिलाओं से अपने ससुर का पता पूछते हैं तो बात गाँव में फ़ैल जाती है| पेमल को खबर लगते ही वह श्रृंगार कर अपनी भाभी के साथ पनघट पहुँचती हैं| तेजाजी को घर चलने का आमंत्रण दिया जाता है| तेजाजी आग्रह मानकर जैसे ही घर में लीलण के साथ प्रवेश करते हैं, गायें बिदक जाती हैं| ऐसे में दूध दूह्ती पेमल की मां गायों को भड़काने वाले सवार को काले सांप से डसे जाने की बद्दुआ देती है| तेजाजी इस व्यवहार को सहन नहीं कर पाते हैं और वापस लौटने लगते हैं| पेमल दुखी हो जाती है| वह तेजाजी से मां के व्यवहार के लिए माफी मांगती है और कहती हैं कि यह सब अनजाने में हुआ है| वह तेजाजी को अपने बाग़ में बने महल में रूकने को राजी कर लेती हैं|
तेजाजी और पेमल बातें कर रहे होते हैं कि दूर से एक महिला के रोने की आवाज आती है|
बाहर देखने पर पता चला कि पेमल की सहेली लाछां गुर्जरी है| वह बताती है कि उसकी गायें मीणा छीनकर ले गए हैं| उन दिनों गाय महँगा धन था और अक्सर गायें लूटकर ले जाने का अपराध होता था| लाछां ने बताया कि गाँव का कोई भी व्यक्ति उसकी मदद नहीं कर पाया है सब लुटेरों से मिल गए हैं और साजिश कर ली गई है|
लाछां का रोना तेजाजी से नहीं देखा गया और उन्होंने मीणाओं से गायें वापस लाने का वादा कर दिया| उधर पेमल धर्म संकट में थीं| एक तरफ बरसों बाद पति से मिलन हो रहा था तो दूसरी तरफ एक असहाय सहेली का दुःख था| पेमल ने भी तेजाजी के वादे से खुद को जोड़ा और युद्ध में साथ जाने की जिद करने लगी| तेजाजी ने उन्हें समझाकर रोका और अपने अभियान के लिए उसी समय चल दिए|
तेज गति से लीलण बढ़ रही थी कि तेजाजी को रास्ते में आग में जलता काला नाग दिखाई दिया| दयालु तेजाजी ने भाले से नाग को आग से बाहर निकाला तो नाग देवता नाराज हो गए| बोले कि मैं इस योनि से छुटकारा पा रहा था और आपने व्यवधान कर दिया| तेजाजी हैरान थे कि अब प्रायश्चित कैसे किया जाए ? नागराज बोले कि आपको डसने से ही हिसाब बराबर होगा| तेजाजी ने वचन दे दिया पर उस समय तक मोहलत माँगी, जब तक वे लाछां की गायें लौटा दें| नाग देवता ने इस वचन के साक्षी के बारे में जानना चाहा तो तेजाजी ने खेजड़े और सूरज को साक्षी बताया| नागराज मान गए|
भीषण युद्ध हुआ| मीणा दुहाई देते रहे कि उन्होंने कभी तेजाजी की मां को बहन माना था पर मामा की एक नहीं सुनी गई और तेजाजी ने युद्ध में गायें मीणों से छीन लीं| घायल तेजाजी लाछां को गायें लौटाकर अपना वादा निभाने नागदेवता की बाम्बी की तरफ चल दिए| नागराज ने वचन के पक्के तेजाजी को देखा तो पसीज गए और बहाने करने लगे. बोले कि आपका तो पूरा शरीर घायल है, मेरे डसने के लिए कोई कुंवारी जगह नहीं बची है| तेजाजी बोले कि आप मेरी जीभ को डस लीजिये, यह किसी भी घाव से अछूती है| नागराज मजबूर हो गए पर तेजाजी को वरदान दे गए| एक अबला की निस्वार्थ मदद करने वाले वीर और वचन के पक्के तेजाजी को उन्होंने अमरत्व की आशीष दी|
तेजाजी के देवलोक होने की खबर देने के लिए लीलण उनके गाँव खरनाल चल दी और यह खबर देने के बाद लीलण अपने सवार की याद में चल बसी| तेजाजी की बहन भुन्गरी भी भाई के विछोह को सहन नहीं कर पाई और देह त्याग दी| पेमल भी तेजाजी के साथ ही देवलोक चली गईं|
उस दिन वि.सं. 1160 के भादों महीने की शुक्ल पक्ष की दशमीं थी. इसे तेजा दशमीं कहते हैं.
तेजाजी लोकदेव हो गए. उनके निस्वार्थ बलिदान की कहानी समूचे उत्तर पश्चिम भारत में फ़ैल गई.
तेजाजी राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात प्रान्तों में लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं। किसान वर्ग अपनी खेती की खुशहाली के लिये तेजाजी को पूजता है।
तेजाजी ने ग्यारवीं शदी में गायों की डाकुओं से रक्षा करने में अपने प्राण दांव पर लगा दिये थे। वीर तेजाजी का जाटों में महत्वपूर्ण स्थान है। तेजाजी सत्यवादी और दिये हुये वचन पर अटल थे। उन्होंने अपने आत्म - बलिदान तथा सदाचारी जीवन से अमरत्व प्राप्त किया था। उन्होंने अपने धार्मिक विचारों से जनसाधारण को सद्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया और जनसेवा के कारण निष्ठा अर्जित की। तेजाजी के मंदिरों में निम्न वर्गों के लोग पुजारी का काम करते हैं। उन्होंने जनसाधारण के हृदय में हिन्दू धर्म के प्रति लुप्त विश्वास को पुन: जागृत किया।
तेजाजी के भारत मे अनेक मंदिर हैं। तेजाजी के मंदिर राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, गजरात तथा हरयाणा में हैं। प्रसिद्ध इतिहासकार श्री पी.एन. ओक का दावा है कि ताजमहल शिव मंदिर है जिसका असली नाम तेजो महालय है| आगरा मुख्यतः जाटों की नगरी है| जाट लोग भगवान शिव को तेजाजी के नाम से जानते हैं| The Illustrated Weekly of India के जाट विशेषांक (28 जून, 1971) के अनुसार जाट लोगों के तेजा मंदिर हुआ करते थे| अनेक शिवलिंगों में एक तेजलिंग भी होता है जिसके जाट लोग उपासक थे| इस वर्णन से भी ऐसा प्रतीत होता है कि ताजमहल भगवान तेजाजी का निवासस्थल तेजोमहालय था। श्री पी.एन. ओक अपनी पुस्तक Tajmahal is a Hindu Temple Palace में 100 से भी अधिक प्रमाण एवं तर्क देकर दावा करते हैं कि ताजमहल वास्तव में शिव मंदिर है जिसका असली नाम तेजोमहालय है।
धन्य है वीर प्रसूता भारत माँ जिसने हर काल खंड में असंख्य वीरों को जन्म दिया|
जय जननी, जय भारत|

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