Monday 5 September 2016

आध्यात्म में कोई भी उपलब्धी अंतिम नहीं होती ....

आध्यात्म में कोई भी उपलब्धी अंतिम नहीं होती .....
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जिसे हम खजाना मानकर खुश होते हैं, कुछ समय पश्चात पता लगता है कि वह कोई खजाना नहीं बल्कि कंकर पत्थर का ढेर मात्र था|
आध्यात्मिक अनुभूतियाँ अनंत हैं| जैसे जैसे हम आगे बढ़ते हैं, पीछे की अनुभूतियाँ महत्वहीन होती जाती हैं| यहाँ तो बस एक ही काम है कि बढ़ते रहो, बढ़ते रहो और बढ़ते रहो| पीछे मुड़कर ही मत देखो|
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अन्य कुछ भी मत देखो, कहीं पर भी दृष्टी मत डालो; सिर्फ और सिर्फ हमारा लक्ष्य ही हमारे सामने निरंतर ध्रुव तारे की तरह चमकता रहे| फिर चाहे कितना ही अन्धकार हो, परमात्मा की कृपा से हमें मार्ग दिखाई देता रहेगा|
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एक बार किसी साधक से किसी ने पूछा --- क्या तुम भगवान में विश्वास करते हो?
उस साधक का उत्तर था --- नहीं, भगवान मुझमें विश्वास करते हैं इसीलिए मैं यहाँ हूँ|
उन्हें विश्वास था कि मैं उनकी बाधाओं को पार कर सकता हूँ तभी ये सब बाधाएँ हैं|
मैं उनके साथ विश्वासघात नहीं कर सकता|
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ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!

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