Thursday 18 August 2016

धर्मरक्षा हेतु निरंतर अनवरत प्रयास ही मेरी दृष्टी में आध्यात्म है .....

धर्मरक्षा हेतु निरंतर अनवरत प्रयास ही मेरी दृष्टी में आध्यात्म है .....
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मनुष्य का स्वभाविक धर्म है ..... परम तत्व की खोज और उससे एकात्मता; जिसमें निरंतर बाधाएं आती रहती हैं|
आध्यात्म कोई व्यक्तिगत मोक्ष, सांसारिक वैभव, इन्द्रीय सुख या अपने अहंकार की तृप्ति की कामना का प्रयास नहीं है| यह कोई दार्शनिक वाद विवाद या बौद्धिक उपलब्धी भी नहीं है|
उन बाधाओं को दूर करते हुए निरंतर स्वधर्म की रक्षा का प्रयास और परम तत्व से एकात्मता ही आध्यात्म है| इसके लिए सज्जनों की रक्षा और दुर्जनों का विनाश भी आवश्यक है|
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भगवन राम और श्रीकृष्ण का जीवन हमारे लिए आदर्श है| उन जैसे महापुरुषों के गुणों को स्वयं के जीवन में धारण करना, उन की शिक्षा और आचरण का पालन करना ही भगवान की सच्ची आराधना है| भगवान श्रीराम और श्री कृष्ण ने जन्म से ही धर्म रक्षार्थ, संस्थापनार्थ, व संवर्धन हेतु शौर्य संघर्ष व संगठन साधना का आदर्श रखा|
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स्वेच्छा से कारावास में जन्म लेकर प्रभु श्री कृष्ण ने जन्म से ही संघर्ष का मार्ग चुना| उनके स्वयं के परिवार के सदस्य परिजनों में जो विधर्मी तत्व थे जैसे कंस, पूतना का उन्होंने विनाश किया| अपने ग्राम वासियों की विधर्मी, आसुरिक तत्वों से रक्षा बाल्यकाल से ही की| धर्म सम्मत संघर्ष व शौर्य तत्व का सन्देश उन्होंने बाल्यकाल से ही दिया| स्वयं सर्वज्ञानी होते हुए भी उन्होंने संदीपनी मुनि जी के आश्रम में शिक्षा ग्रहण की और आलस्य से ऊपर उठकर सदा साधनारत रहने की शिक्षा दी| कुरुक्षेत्र के युद्ध में सदशक्तियों को संगठित कर विधर्मी तत्वों का विनाश किया|
भगवान श्री राम की ही भाँति इस युद्ध में भी उन्होंने शौर्य संघर्ष, सद शक्तियों से ही करवाया| स्वयं को उन्होंने मार्गदर्शक के रूप में रखा ताकि हिन्दू समाज हिंदुत्व हित संघर्ष करना सीखे, युद्ध करना सीखे व धर्म हित, हिंदुत्व हित तुच्छ भेदभावो से ऊपर उठकर संगठित होना सीखे|
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भगवन श्री कृष्ण ने गीता का ज्ञान अर्जुन को कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि में दिया, इस प्रसंग के आध्यात्मिक सन्देश को समझें कि रणभूमि में उतरे बिना यानि साधना भूमि में उतरे बिना आप आध्यात्म को, स्वयं के ईश्वर तत्व को उसके यथार्थ स्वरुप में अनुभूत नहीं कर सकते|
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धर्म हित यानि हिंदुत्व हित के लिए स्वयं को समर्पित कर देना ही आध्यात्म की पराकाष्ठा है| यह अनुभूत कर कि भविष्य में उनके वंश के लोग विधर्मी प्रवृत्ति के हो जायेंगे उन्होंने लीला रची तथा गांधारी के श्रापवश स्वयं का व स्वयं के वंश का हिंदुत्व हित बलिदान दिया|
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भगवान् राम ने भी धर्मरक्षार्थ यानि हिंदुत्वरक्षार्थ अपने राज्य के वैभव का त्याग किया और भारत में पैदल भ्रमण कर अत्यंन्त पिछड़ी और उपेक्षित जातियों को जिन्हें लोग तिरस्कार पूर्वक वानर और रीछ तक कह कर पुकारते थे, संगठित कर धर्मविरोधियों का संहार किया| लंका का राज्य स्वयं ना लेकर विभीषण को ही दिया| ऋषि मुनियों की रक्षार्थ ताड़का का वध भी किया| वे हजारों वर्षों से हमारे प्रातःस्मरणीय आराध्य हैं|
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स्वयं के भीतर के राम और कृष्ण तत्व से एकात्म ही आध्यात्म है और यही सच्ची साधना है| यही शिवत्व की प्राप्ति है|
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ॐ ॐ ॐ ||

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