Thursday 18 August 2016

विश्व के विनाश की औत विश्वयुद्ध की सब भविष्यवाणियाँ झूठी हैं .....

सन १९७६ ई.से मुझे एक शौक सा जागृत हुआ जिसे मैं शौक नहीं एक अति तीब्र जिज्ञासा का जन्म कहूंगा, मैंने हर प्रकार की रहस्यमय साधनाओं, दर्शन, सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक विचारधाराओं, इतिहास, भूगोल व आध्यात्म की आसानी से उपलब्ध उन सभी पुस्तकों को ढूँढ ढूँढ कर पढ़ना आरम्भ कर दिया जिनको समझना मेरी अल्प बुद्धि की सीमा में था|
जब और भी अधिक समय मिलता तब मैं विभिन्न महत्वपूर्ण लोगों से मिलने जुलने और उनके विचारों को जानने का प्रयास करता| विश्व के अनेक देशों में जाने के बहुत अवसर मिले जिनका मैनें पूरा लाभ उठाया और अति प्रबल बौद्धिक जिज्ञासा को यथासंभव शांत किया| प्रकृति का सौम्यतम और विकरालतम रूप भी देखा| पूरे विश्व का भूगोल मस्तिष्क में समा गया कि विश्व के किस भाग में कैसा जीवन और कैसी परिस्थितियाँ है आदि आदि|
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देश-विदेश के लोगों की अनेक भविष्यवाणियाँ पढ़ीं और उनसे उस समय प्रभावित भी हुआ| पर वे सारी भविष्यवाणियाँ झूठी सिद्ध हुईं| आज तक मैंने जितनी भी भविष्यवाणियाँ पढ़ीं हैं वे सब झूठी थीं| अनेक लोगों को मैंने फर्जी पाया जिनको मैं गहराई वाला समझता था| आजकल एक रूझान सा चल रहा है विश्व युद्ध और विश्व के विनाश के बारे में लिखने का| अब में पिछले एक-दो वर्षों की घटनाओं का विश्लेषण कर के कह सकता हूँ कि ऐसा कुछ नहीं होगा| न तो कोई विश्व युद्ध होने वाला है और न कोई महाविनाश| ऐसी परिस्थितयाँ वर्त्तमान में अनेक बार उत्पन्न हुईं हैं पर मनुष्य अभी इतना विवेकशील हो गया है कि कैसी भी विकट परिस्थिति हो उसका समाधान निकाल लेता है| आगे मनुष्य के विवेक का और भी अधिक विकास होगा|
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अतः कुछ नहीं होने वाला है| जब तक जीवित हो तब तक प्रसन्न रहो| जब मृत्यु आ जायेगी तब वह अपना काम करेगी, उसके बारे में सोच कर क्यों दुखी होना? आध्यात्म में कुछ पूर्व जन्मों के संस्कार ही थे जिनसे वेदान्त दर्शन और भक्ति का उदय हुआ जिसे मैं अपने जीवन की एकमात्र उपलब्धी मानता हूँ| जिसे हम बाहर ढूंढते हैं वह तो हम स्वयं ही हैं| आगे आने वाला समय अच्छा ही अच्छा होगा| जीवन का एक अंधकारमय कालखंड भी था जिसमें मैं मार्क्सवादी हो गया था| पर उस अन्धकार से शीघ्र ही बाहर निकल आया| अब तो मैं सभी से परमात्मा की भक्ति और ध्यान साधना की बातें ही करता हूँ|
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आप सब में भी मुझे प्रभु के ही दर्शन होते हैं| आप सब मेरे ही निजात्मगण हैं| आप सब को नमन ! जन्माष्टमी आने वाली है| अभी से तैयारियाँ आरम्भ कर दीजिये अपनी भक्ति यानि परम प्रेम को व्यक्त करने के लिए|
तत्व रूप में शिव, विष्णु और शक्ति एक ही हैं| महत्व सिर्फ प्रेम और समर्पण का है|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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