Thursday 18 August 2016

श्रावणी पूर्णिमा यानि रक्षा बंधन पर्व की सभी को शुभ कामनाएँ .......

श्रावणी पूर्णिमा यानि रक्षा बंधन पर्व की सभी को शुभ कामनाएँ .......
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रक्षा बंधन पर बहुत सारे लेख और साहित्य उपलब्ध है, अतः उस पर और अधिक नहीं लिखना चाहता| पर कुछ विस्मृत होती जा रही बातों को अपनी सीमित बुद्धि से आवश्यक समझ कर लिख रहा हूँ| कोई अशुद्धि होगी तो उसमें सुधार करूँगा|
(1) यह ब्राह्मणों का सबसे बड़ा पर्व है ....
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ब्राह्मण लोग इस दिन श्रावणी कर्म करते हैं| ब्राह्मणों के लिए यह श्रावणी कर्म अनिवार्य है| इस कर्म में अभिमंत्रित करके पूजे हुए पूजे गए यज्ञोपवीत (जनेऊ) ही ब्राह्मण पहिनते हैं, अन्य नहीं| बिना अभिमंत्रित किये हुए जनेऊ पहिनने का निषेध है|
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जनेऊ यानि यज्ञोपवीत कोई धागा मात्र नहीं होता| इसमें ओंकार रूप में परमात्मा और अग्नि आदि विभिन्न देवताओं का आह्वान किया जाता है| ब्राह्मण लोग प्रति वर्ष रक्षाबंधन के दिन श्रावणी कर्म में वर्ष भर के लिए जनेऊ अभिमंत्रित कर लेते हैं| ब्राह्मण लोग इस दिन आत्मशुद्धि के लिए अभिषेक और हवन करते हैं|
वैदिक काल से ही ब्राह्मण लोग पवित्र नदियों या तालाबों के तट पर आत्मशुद्धि का यह कर्म मनाते आये हैं| इस कर्म में आंतरिक व बाह्य शुद्धि गोबर, मिट्टी, भस्म, अपामार्ग, दूर्वा, कुशा एवं मंत्रों द्वारा की जाती है| पंचगव्य महाऔषधि है| श्रावणी कर्म में दूध, दही, घृत, गोबर, गोमूत्र प्राशन कर अंतःकरण को शुद्ध किया जाता है| यह कर्म ब्राह्मण के शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि करता है|
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विधिवत यज्ञोपवीत धारण करने के पश्चात ही कोई द्विज बनता है| द्विज को ही वेदपाठ करने का अधिकार है| गायत्री मन्त्र का जाप करने का अधिकार भी उसी को है जो विधिवत रूप से यज्ञोपवीत धारण कर के द्विज बना है| अन्यों को गायत्री मन्त्र के जप का अधिकार नहीं है| द्विज (यानि जिसने विधिवत यज्ञोपवीत धारण कर रखा है) की पत्नी भी गायत्री मन्त्र के जाप की अधिकारिणी है, अन्य स्त्रियाँ नहीं|
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श्रावण की पूर्णिमा को ब्राह्मण लोग श्रावणी कर्म क्यों करते हैं इसका कारण निम्न है.....
एक कल्पांत में वेदों का ज्ञान लुप्त हो गया था| मधु और कैटभ नाम के राक्षसों ने ब्रह्मा जी से भी वेदों को छीन लिया और रसातल में छिप गए| ब्रह्मा जी ने वेदोद्धार के लिए भगवान विष्णु की स्तुति की| स्तुति सुन कर भगवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लिया और श्रावण की पूर्णिमा के ही दिन ब्रह्माजी को वेदों का ज्ञान दिया| हयग्रीव विद्या और बुद्धि के देवता हैं| तभी से वेदपाठी विप्र श्रावणी पूर्णिमा के ही दिन यह उपाकर्म करते हैं|
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(2) संघ के प्रमुख उत्सवों में से यह एक उत्सव है ......
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इस दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक भगवा ध्वज को रक्षा बंधन (राखी) बाँध कर राष्ट्र रक्षा का संकल्प लेते हैं|
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(3) ऐतिहासिक व सामाजिक रूप से राखी का त्योहार .....
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पुराणों में बर्णन मिलता है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नज़र आने लगे| देवराज इन्द्र घबरा कर बृहस्पति के पास गये| वहाँ बैठी इन्द्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी| उसने रेशम का धागा मन्त्रों की शक्ति से अभिमंत्रित करके अपने पति के हाथ पर बाँध दिया| वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था| इन्द्र उस लड़ाई में इसी धागे की मन्त्र शक्ति से ही विजयी हुए| उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बाँधने की प्रथा चली आ रही है|
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दानवेन्द्र राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की| भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा माँगने पहुँचे| गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी| भगवान ने तीन पग में सारा आकाश पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया|
बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया| भगवान के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय बताया| लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन यानि राखी बाँध कर अपना भाई बनाया और उससे दक्षिणा के रूप में अपने पति को माँग कर अपने साथ ले आयीं| उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी|
इसीलिए कलाई पर रक्षा-सूत्र बाँधते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करते हैं .....
"येन बद्धो बली राजा, दानवेन्द्रो महाबल: | तेन त्वां प्रति बच्नामी, रक्षे मा चल मा चलः ||" अर्थात् रक्षा के जिस साधन (राखी) से अतिबली राक्षसराज बली को बाँधा गया था, उसी से मैं तुम्हें बाँधता हूँ | हे रक्षासूत्र ! तू भी अपने कर्त्तव्यपथ से न डिगना अर्थात् इसकी सब प्रकार से रक्षा करना|
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भारतवर्ष पर जब अरबों और मध्य एशिया से आये अति क्रूर मुसलमानों के आक्रमण आरम्भ हुए तब आक्रमणकारी अपने साथ महिलाओं को तो लाये नहीं थे| वे हिन्दुओं की ह्त्या कर उनकी महिलाओं को छीन ले जाते थे| तब से हिन्दू बहिनें अपने भाइयों को राखी बाँधकर उनसे अपनी रक्षा का वचन लेने लगीं|
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(4) रक्षा सूत्र बनाने की विधि .....
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पुराने ज़माने में राखी इन पाँच चीजों से बनती थी ......
(१) दूर्वा (घास) (२) अक्षत (चावल) (३) केसर (४) चन्दन (५) सरसों के दाने|
इन ५ वस्तुओं को रेशम के कपड़े में बांधकर कलावा बना देते थे|
इसके पीछे यह प्रतीकात्मक भावना थी .....
(१) दूर्वा ....दुर्वा गणेश जी को प्रिय है| मेरे भाई या जिसके भी हम राखी बाँध रहे हैं, उसके जीवन से भी विघ्नों का नाश हो और उसका वंश तेजी से बढे|
(२) अक्षत .... धर्म के प्रति उसकी श्रद्धा कभी क्षत ना हो|
(३) केसर .... वह तेजस्वी बनो|
(४) चन्दन .... उसके जीवन में शीतलता बनी रहे| उसके गुणों की सुगंध सर्वत्र फैले|
(५) सरसों के दाने .... वह शत्रुओं के प्रति तीक्ष्ण बने|
इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई एक राखी को संकल्प कर के बांधते थे|
महाभारत में यह रक्षा सूत्र माता कुंती ने अपने पोते अभिमन्यु को बाँधा था| जब तक यह धागा अभिमन्यु के हाथ में था तब तक उसकी रक्षा हुई, धागा टूटने पर अभिमन्यु की मृत्यु हुई|
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अब तो यह भाई-बहिन के प्रेम के प्रतीक का त्यौहार बन गया है|
मैं समस्त मातृशक्ति और विप्रगण को इस पावन पर्व की बधाई और शुभ कामना प्रेषित करता हूँ| भगवान आप सब की और सत्य सनातन धर्म की रक्षा करें|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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