Thursday, 18 August 2016

मेरी आस्था अब सिर्फ भगवान् और उनके भक्तों पर ही है ......

मैं अपने अनुभवों से जीवन के जिस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ उससे -------
(1) सभी राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं पर से मेरी आस्था उठ चुकी है| आजकल जिस तरह के उनके संचालक हैं उनके मनोभाव और विचार मुझे स्वतः ही उनसे दूर कर देते हैं|
(2) समाज के अधिकाँश लोगों पर से भी मेरी आस्था हट चुकी है और उनसे मोहभंग हो गया है| कोई क्या कह रहा है इससे कुछ असर नहीं पड़ता, पर उनके विचारों का प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता|
(3) सिर्फ आध्यात्म जगत के लोग ही मुझे आकर्षित करते हैं जिनके ह्रदय में प्रभु के प्रति कूट कूट कर प्रेम भरा पड़ा है| उनके ह्रदय में परमात्मा है इसलिए वे मुझे प्रिय हैं|
(4) मेरी आस्था अब सिर्फ भगवान् और उनके भक्तों पर ही है| भक्त का अर्थ है अहैतुकी परम प्रेमी|
भगवान ही अब धर्म की पुनर्स्थापना करेंगे| भारत में अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया है और अनेक और जन्मेंगे जो भारत को परम वैभव पर पहुँचाएँगे|
(5) शीघ्र ही भारत में राष्ट्रवाद का विस्तार होगा| अनेक क्रन्तिकारी घटनाएँ घटेंगी| अज्ञान और अन्धकार की शक्तियों और दुष्टों का विनाश होगा| भारत माँ अपने द्विगुणित परम वैभव के साथ अखंडता के सिंहासन पर विराजमान होंगी|
(6) मैं अधिकांशतः उपलब्ध नहीं रहूँगा| अपना अधिकतम समय देने के लिए और भी कार्य हैं|
सभी का आभार और धन्यवाद ! सभी को प्रणाम !
ॐ शिव| ॐ ॐ ॐ ||

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