Thursday 18 August 2016

जब भी परमात्मा के प्रति प्रेम की अनुभूति होती है, वह सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त है .....

जब भी परमात्मा के प्रति प्रेम की अनुभूति होती है, वह सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त है .....
------------------------------------------------------------------------------
आध्यात्म में आधे-अधूरे समर्पण से काम नहीं चलता| पूरी डुबकी ही लगानी पडती है| परमात्मा के बारे में हम उतना ही जान सकते हैं जितना हमारा मन कल्पना कर सकता है और बुद्धि सोच सकती है, पर हमारा मन और हमारी बुद्धि दोनों ही अति अति अति अल्प और सीमित है| उससे हम असीम अनंत को नहीं समझ सकते| यहाँ श्रुति भगवती को और महापुरुषों के वचनों को ही प्रमाण मानना पड़ता है|
.
जब भी परमात्मा की याद आये वह क्षण ही सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त है| जिस समय दोनों नासिकाओं से साँस चल रही हो वह ध्यान करने का सर्वश्रेष्ठ समय है| मेरा तो अनुभव यही है कि लम्बे समय तक यानि कम से कम तीन-चार घंटों तक लगातार ध्यान करने से जो दिव्य प्रेम और आनंद की अनुभूतियाँ होती हैं, वे ही परमात्मा की अनुभूतियाँ हैं| एक साधक को यदि हो सके तो प्रतिदिन कुल कम से कम चार घंटों तक ध्यान करना चाहिए और सप्ताह में एक दिन तो कम से कम छः से आठ घंटों तक ध्यान करना चाहिए|
.
जब दोनों नासिकाओं से साँस चल रही हों, वह ध्यान का सर्वश्रेष्ठ समय होता है| यदि नासिकाओं के साथ कोई समस्या है तो नाड़ीशोधन के हठयोग में नेति आदि के कई प्रयोग हैं जो किसी हठयोग शिक्षक से सीख सकते हैं| ध्यान से पूर्व यथासंभव सूर्य-नमस्कार जैसे कुछ हलके व्यायाम और महामुद्रा (पश्चिमोत्तान पर आधारित) आदि का अभ्यास और अनुलोम-विलोम आदि करना चाहिए| एक ही आसन में बैठे बैठे पैर दुखने लगें तब फिर महामुद्रा का अभ्यास करना चाहिए| योनिमुद्रा और खेचरी का भी शनेः शनेः अभ्यास करते रहना चाहिए|
.
जब भी हो सके तो संधिक्षणों में कुछ देर परमात्मा का चिंतन मनन, स्मरण या कुछ साधना अवश्य करनी चाहिए| संधिक्षणों में की गयी साधना को संध्या कहते हैं|

आप सब में हृदयस्थ परमात्मा को नमन |
ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||

No comments:

Post a Comment