Friday, 27 June 2025

श्रीमद्भगवद्गीता में अक्षर ब्रह्म की उपासना ---

 श्रीमद्भगवद्गीता में अक्षर ब्रह्म की उपासना ---

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श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कहते हैं --
"सर्वद्वाराणि संयम्य मनो हृदि निरुध्य च।
मूर्ध्न्याधायात्मनः प्राणमास्थितो योगधारणाम्॥८:१२॥"
"ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्।
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम्॥८:१३॥"
"अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः।
तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः॥८:१४॥"
अर्थात् - "सब (इन्द्रियों के) द्वारों को संयमित कर मन को हृदय में स्थिर करके और प्राण को मस्तक में स्थापित करके योगधारणा में स्थित हुआ॥"
"जो पुरुष ओऽम् इस एक अक्षर ब्रह्म का उच्चारण करता हुआ और मेरा स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग करता है वह परम गति को प्राप्त होता है॥"
""हे पृथानन्दन ! अनन्यचित्तवाला जो मनुष्य मेरा नित्य-निरन्तर स्मरण करता है, उस नित्ययुक्त योगीके लिये मैं सुलभ हूँ अर्थात् उसको सुलभतासे प्राप्त हो जाता हूँ।"
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भगवान ने गीता में ओंकार को अक्षर ब्रह्म बताया है। श्रुति भगवती यानि सारे उपनिषद् ओंकार की महिमा से भरे पड़े हैं। योग सूत्रों में इसे परमात्मा का वाचक बताया है -- तस्य वाचकः प्रणवः॥१:२७॥"
इसलिए अपनी अपनी गुरु-परम्परानुसार गुरु के आदेश से गुरु की बताई हुई विधि से अक्षर ब्रह्म ओंकार का का निरंतर अनुस्मरण और नामजप करते रहना चाहिए|
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जब प्रणव का अनहद नाद अंतर में सुनाई देना आरम्भ कर दे तब पूरी लय से उसी में तन्मय हो जाना चाहिए। निरंतर उसी को पूरी भक्ति और लगन से सुनना चाहिए। पूरा बचा हुआ जीवन इसी की साधना में लगा देना चाहिए। जब भी समय मिले एकांत में पवित्र स्थान में सीधे होकर बैठ जाएँ। दृष्टी भ्रूमध्य में हो, दोनों कानों को अंगूठों से बंद कर लें, छोटी अंगुलियाँ आँखों के कोणे पर और बाकि अंगुलियाँ ललाट पर। आरम्भ में अनेक ध्वनियाँ सुनाई देंगी। जो सबसे तीब्र ध्वनी है उसी को ध्यान देकर सुनते रहो। उसके साथ मन ही मन ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ का मानसिक जाप करते रहो। ऐसी अनुभूति करते रहो कि मानो किसी जलप्रपात की अखंड ध्वनि के मध्य में यानि केंद्र में स्नान कर रहे हो। धीरे धीरे एक ही ध्वनी बचेगी, उसी पर ध्यान करो और साथ साथ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ का निरंतर मानसिक जाप करते रहो। आवश्यकता हो तो कोहनियों के नीचे कोई सहारा लगा लो। कानों को अंगूठों से बंद कर के नियमित अभ्यास करते करते कुछ महीनों में आपको खुले कानों से भी वह प्रणव की ध्वनी सुनने लगेगी। यही नादों का नाद अनाहत नाद है।
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इसकी महिमा का वर्णन करने में वाणी असमर्थ है। धीरे धीरे आगे के मार्ग खुलने लगेंगे। प्रणव परमात्मा का वाचक है। यही भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी की ध्वनि है जिससे समस्त सृष्टि संचालित हो रही है। इस साधना को वे ही कर पायेंगे जिन के हृदय में परमात्मा के प्रति परम प्रेम है। सारी कामनाओं को यहीं समर्पित कर देना चाहिए। मन में किसी कामना का अवशेष न रहे।
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जब अनाहत नाद अंतर में सुनना आरम्भ कर दे तब सारे संशय दूर हो जाने चाहिएँ और जान लेना चाहिए कि परमात्मा तो अब मिल ही गए हैं। अवशिष्ट जीवन उन्हीं को केंद्र बिंदु बनाकर, पूर्ण भक्तिभाव से उन्हीं को समर्पित होकर व्यतीत करना चाहिए।
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२८ जून २०२२

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