Friday, 27 June 2025

हे प्राण ! तुम्हें नमस्कार !! तुम्हीं मेरे जीवन हो ---

 हे प्राण ! तुम्हें नमस्कार !! तुम्हीं मेरे जीवन हो ---

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अथर्ववेद का ११ वां काण्ड प्राण-सूक्त है, जिसके भार्गव और वैदर्भि ऋषि हैं, प्राण देवता हैं, और अनुष्टुप छंद है। इसमें कुल २६ मंत्र है। परमात्मा की परम कृपा से प्राण-तत्व का रहस्य यदि समझ में आ जाये तो सृष्टि के सारे रहस्य और सब कुछ अपने आप ही समझ में आ जाता है। फिर इस सृष्टि में जानने योग्य अन्य कुछ भी नहीं रह जाता है।
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पिछले कुछ दिनों में मैंने प्राण-तत्व पर दो लेख लिखे हैं। अतः और लिखने की आवश्यकता अनुभूत नहीं करता। मैं आते हुए प्राण, जाते हुए प्राण, और स्थिर प्राण -- सब को नमस्कार करता हूँ। सब स्थितियों और सब कालों में हे प्राण ! तुम्हें नमस्कार। हे प्राण ! मैं सदा आते-जाते तुझपर दृष्टि रखता हूँ। तेरे आने और जाने की गति के साथ अपनी मनोवृत्ति को लाता और ले-जाता रहता हूँ। तेरे आने-जाने के साथ मेरा अजपा-जप हो जाता है। मैं तुझे तेरी सब स्थितियों में और सब कालों में नमस्कार करता हूँ। ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२८ जून २०२१

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