समझ में तो यही आता है कि परमशिव के संकल्प से इस भौतिक संसार की रचना मूलतः ऊर्जा और प्राण से ही हुई है। यह भौतिक सृष्टि ऊर्जा-खंडों का ही घनीभूत रूप है। इस भौतिक सृष्टि की रचना ऊर्जा के प्रवाह, गति, और विभिन्न आवृतियों पर हो रहे स्पंदन, ऊर्जा खंडों के जुड़ाव और बिखराव से हुई है। किसी भी अणु में कितने इलेक्ट्रॉन हैं, वे ही तय करते हैं कि उनसे बने पदार्थों का स्वरूप क्या हो। और भी बहुत सारे अनसुलझे रहस्य हैं।
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प्राण तत्व ने पूरी सृष्टि को जीवंत कर रखा है। उसकी अनुभूति तो ध्यान में सभी साधकों को होती है, लेकिन उसे समझने की बौद्धिक क्षमता कम से कम मुझ अकिंचन में तो नहीं है। अथर्ववेद में एक प्राण-सूक्त भी है, जिसे समझना मेरी बौद्धिक क्षमता से परे है।
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मेरे लिए सूक्ष्म देह में यह प्राणशक्ति ही भगवती, जगन्माता है, जिसने सारी सृष्टि को धारण कर रखा है। जगन्माता के सारे सौम्य और उग्र रूप प्राण के ही हैं। प्राणशक्ति के रूप में मैं भगवती महाकाली को नमन करता हूँ, जो अपनी अनुभूति कुंडलिनी के रूप में कराती रहती हैं।
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हे भगवती ! मैं आते हुए प्राण, जाते हुए प्राण, और स्थिर प्राण -- सब में आप को नमन करता हूँ। सब स्थितियों और सब कालों में हे भगवती प्राणशक्ति, तुम्हें नमन। मैं सदा आते-जाते तुझ पर दृष्टि रखता हूँ। तेरे आने और जाने की गति के साथ अपनी मनोवृत्ति को लाता और ले-जाता रहता हूँ। तेरे आने-जाने के साथ मेरा अजपा-जप और परमशिव का ध्यान हो जाता है। मैं तुझे तेरी सब स्थितियों में और सब कालों में नमन करता हूँ।
ॐ तत्सत्॥ ॐ ॐ ॐ॥
कृपा शंकर
२८ जून २०२२
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