पंचमुखी महादेव ---
देवाधिदेव भगवान शिव के श्रीचरणों में नमन करते हुए मैं इस लेख को लिखने का दुःसाहस कर रहा हूँ। परमशिव मुझे आशीर्वाद दें और मेरी सहायता करें।
पंचमुखी महादेव का प्रतीकात्मक विग्रह मुझे बहुत अधिक आकर्षित करता है, लेकिन मुझमें इतनी बौद्धिक क्षमता नहीं है कि मैं उन्हें समझ सकूँ। जितना शिवपुराण में लिखा है, उससे अधिक मुझे नहीं पता। लेकिन कुछ तो अनुभूतियाँ हैं, और कुछ अनुमान; उन्हीं पर आधारित यह लेख है। आपको अच्छा लगे तो ठीक हैं, अन्यथा गल्प (गप्प) समझ कर उपेक्षा कर देना।
.
भगवान शिव वैसे नहीं हैं, जैसे हम उन्हें फिल्मों में, टीवी सीरियलों में, और पुस्तकों में देखते हैं। वे एक तत्व हैं, जिनकी अनुभूति हमें आनंद, अनंतता की अनुभूति और प्रकाश रूप में होती है। वैसे वे हमारी धारणा और कल्पना के अनुसार किसी भी रूप में हमें दर्शन दे सकते हैं।
.
शिव, परमशिव, शंकर और शंभू का अर्थ --
हमें ध्यान में अनंत विस्तृत ज्योति, प्रणव की ध्वनि और एक श्वेत पंचमुखी नक्षत्र के दर्शन का अनुभव जब भी होता है, वह बड़े आनंद का विषय होता है। विराट अनंतता और विस्तार की अनुभूति को ही मैं 'शिव' कहता हूँ, जिसका अर्थ है कल्याणकारी।
उस अनंतता से भी परे दिखाई दे रहे श्वेत प्रकाश और नक्षत्र को मैं 'परमशिव' कहता हूँ, जिसका अर्थ है -- परम कल्याणकारी।
शंकर का अर्थ है -- शमनकारी और आनंददायक।
शंभू का अर्थ है -- मंगलदायक।
.
हमारा ब्रह्मांड पाँच तत्वों से बना है -- जल, पृथ्वी, अग्नि, वायु और आकाश। भगवान शिव को पंचानन अर्थात पाँच मुख वाले कहा जाता है। शिवपुराण के अनुसार ये पाँच मुख हैं -- ईशान, तत्पुरुष, अघोर, वामदेव तथा सद्योजात।
भगवान शिव के ऊर्ध्वमुख का नाम 'ईशान' है जो आकाश तत्व है।
पूर्वमुख का नाम 'तत्पुरुष' है, जो वायु तत्व है।
दक्षिणी मुख का नाम 'अघोर' है जो अग्नितत्व है।
उत्तरी मुख का नाम 'वामदेव' है, जो जल तत्व है।
पश्चिमी मुख को 'सद्योजात' कहा जाता है, जो पृथ्वी तत्व है।
.
भूतनाथ और महाकाल का अर्थ --
भगवान शिव पंचभूतों (पंचतत्वों) के अधिपति हैं इसलिए ये 'भूतनाथ' कहलाते हैं।
भगवान शिव काल (समय) के प्रवर्तक और नियंत्रक होने के कारण 'महाकाल' कहलाते है।
काल की गणना 'पंचांग' के द्वारा होती है।
काल के पाँच अंग -- तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण हैं।
रुद्राक्ष सामान्यत: पंचमुखी ही होता है।
शिव-परिवार में भी पांच सदस्य है -- शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और नंदीश्वर। नन्दीश्वर साक्षात धर्म हैं।
शिवजी की उपासना पंचाक्षरी मंत्र .... 'नम: शिवाय' द्वारा की जाती है।
ब्रहृमा-विष्णु-महेश तात्विक दृष्टि से एक ही हैं। इनमें कोई भेद नहीं है।
.
योगियों को कूटस्थ में एक स्वर्णिम आभा के मध्य एक नीला प्रकाश दिखाई देता है जिसके मध्य में एक श्वेत पंचकोणीय नक्षत्र दिखाई देता है -- उसे ही 'पंचमुखी महादेव' कहते हैं। उन्नत योगी उसी का ध्यान करते हैं।
.
शिव-तत्व को जीवन में उतार लेना ही शिवत्व को प्राप्त करना है और यही शिव होना है। यही हमारा लक्ष्य है।
ॐ नमः शंभवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च॥ ॐ तत्सत् !! ॐ नमःशिवाय !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ नवंबर २०२२
.
Note : -- यह लेख अच्छा लगे तो इस पर मनन करें, अन्यथा इसे गल्प समझकर उपेक्षा कर दें। आपको धन्यवाद !!
No comments:
Post a Comment