Wednesday 16 November 2022

अज्ञान ग्रंथियों का भेदन :---

 अज्ञान ग्रंथियों का भेदन :---

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योग साधना में ब्रह्मग्रंथि, विष्णुग्रंथि और रूद्रग्रंथि -- इन तीन अज्ञान ग्रंथियों को भेदना पड़ता है। जिसने इन तीन ग्रंथियों का भेदन कर लिया, वह त्रिभंगमुरारी है। भगवान श्रीकृष्ण की हाथ में बांसुरी बजाते हुए, दाहिने पैर पर भार डालकर बायाँ पैर आगे टिका कर, देह को तीन स्थानों से मोड़ कर खड़े होने की जो मुद्रा है वह त्रिभंग मुद्रा है। ऐसी मुद्रा में भगवान जैसे खड़े हैं, उन्हें "बाँके बिहारी" कहते हैं।
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श्रीमद्भागवत (१/२/२१) और मुन्डकोपनिषद (२/२/८) में इसकी चर्चा है।
भिद्यते हृदयग्रंथिश्छिद्यन्ते सर्वसंशया।
क्षीयन्ते चास्य कर्माणि तस्मिन् दृष्टे परावरे॥ (मुन्डकोपनिषद : २/२/८)
विष्णु ग्रंथि का भेदन होने से सब संशय दूर हो जाते हैं। दुर्गापूजा में असुर वध के माध्यम से उसी हृदय ग्रंथि भेद की क्रिया को ही रूपक द्वारा प्रदर्शित किया गया है। इसी प्रकार रूद्रग्रंथि और ब्रह्मग्रन्थी भेदन की महिमा शास्त्रों में भरी पडी है।
इन तीन ग्रंथियों का भेदन जो मूलाधार, अनाहत और आज्ञाचक्र में स्थित हैं, अत्यंत दुष्कर कार्य है, इससे पशुवृत्ति पर नियंत्रण होता है। ज्ञानसंकलिनी तंत्र के अनुसार ऐसा साधक ऊर्ध्वरेता बनता है।
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यह विधि बहुत अधिक सरल है लेकिन इसको गुरु द्वारा शिष्य को अपने सामने बैठाकर अपनी स्वयं की ही वाणी से सिखाई जाती हैं। गुरु की शक्ति ही काम करती है।
आप सब के ह्रदय में स्थित भगवान वासुदेव को नमन !!
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१५ नवंबर २०२२

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